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38 वेङ्कटाचल इत्येव प्रथितः पृथिवीतले । आपन्नकामधेनुर्यः शोकार्तानां सुरद्रुमः ।। ११ ।। चिन्तामणिरिवार्तानां तत्राऽस्ते कमलापतिः । निर्हेतुकदयापूर्ण: श्रितानामिष्टदः सदा ।। १२ ।। तत्राऽस्ते पद्मिनी काचित्फुल्लपङ्कजशोभिता । 'स्वामिपुष्करिणी'त्येव नामतः प्रथिता शुभा ।। १३ ।। तत्पश्चिमे तटे श्रीमान्महावल्मीकभूधरः । उत्तिष्ठ तत्र गच्छ त्वं तत्तीरे कुटिकां कुरु ।। १४ ।। तत्र स्थित्वा त्रिसन्ध्यं वै तत्रैव स्नानमाचरन् । तत्र स्थितं वेङ्कटेश भावयित्वा च बुद्धितः ।। १५ ।। चतुर्भुजं शङ्खचक्रे दधानं वरदं हरिम् । अभ्यर्चयन्मासषट्कं श्रद्धाभक्तिसमन्वितः ।। १६ ।। निवस त्वं महाबाहो ! स्वामित्वं प्राप्स्यसि ध्रुवम्'। निद्रा में ही पड़े हुए उनसे अशरीरा भगवती वाग्देवी ने कहा-“ है महाबाहो ! अब धैर्य धारण करके सोच मत करो । यहाँ से लगभग कोस भर पर उत्तर तरफ़ पृथ्वीतल में अत्यन्त विख्यात वेङकट नाम का पर्वत है, जो दीनों के लिए कामधेनु, शोकातों के लिए कल्पवृक्ष और आतों के लिए चिन्तामणि है, वहाँ ही कमलापति भगवान वास करते हैं, जो अहेतु ही दयानिधि, आश्रितों के अभीष्ट पूरक हैं, और वहाँ ही कोई स्वामिपुष्करिणी नाम से विख्यात अत्यन्त शुभ खिले हुए अनन्त कमलों से परिपूर्ण युवकरिणी है । उसके पश्चिम भाग में, दोमकमय पर्वत है, उठो, वहाँ ही जाओ, उसी के किनारे कुटी-बनाओ और वहाँ रहकर त्रिकाल स्नाय करते हुए वेंकटेश भगवान् चतुर्भुज शंख चक्र धारी हरि की, छः मास तक श्रद्धा भक्ति से ध्यान तथा पूजा करते हुए निवास करो । ऐसा करने से तुम अवश्य स्वामित्व तथा स्वराज्य.पा जाओगे ? (९-१६) तच्छ्त्वा वचनं तस्या गतशोकः प्रसन्नधीः ।। १७ ।।