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करता है ! है विद्वान ! मेरे नाभीसे उत्पन्न ब्रह्मा ब्रह्माण्डरूपी घरको जनाते है। जो लक्ष्मी ६ वह मेरी कल्याणी भार्या हैं और जो अन्य ९४ लाख " असंख्य जौव हैं वे मेरे पुत हैं। हे मुनिसत्तम ! इनकी रक्षा के लिये मैं सदा उद्यत रहता हूँ। हे स्वामी !. हे मुनिसत्तम ! मुझ बहुत बड़े कृटुम्बवालेको भलाई छे कारण आप जो अनृत बोले हैं; आपके किये हुए इस उपकारकी बराबरी नहीं छो सकती । हे भुनि । तथापि मैं अपने शरीरका मालिंगन दूंगा । अपने शरीरसे बढ़कर आप योग्य दूसरा शुथ मैं नहीं जानता, ऐसा कङ्कर पुरुषोत्तम वे उनको अपचै अंगका (१८९) त्वत्पुण्यस्यावधिर्नास्ति मत्सङ्गस्तव पुण्यजः । यथा त्वया कृतं कर्म तथा पूर्व कपीश्वरः ॥ १९० ।। सीतानिमित्तं यः कर्म कृतवान्मारूतात्मजः । तस्मै प्रादां महीदेव ! सन्तुष्टः सहमोजतम् ।। १९१ ।। सत्यलोकाधिपत्यं च सीतावातवलम्बिते । तस्माद्वरिष्ठं ते कर्म मुने तापसपुङ्गव ।। १९२ ।। एवमुक्त्वा सुभद्राणि वाक्यानि विविधानि च । ततः प्रोवाच भगवान् कक्षे किं भाति भानुवत् । १९३ ।। आपके पुण्यका अन्त नहीं है, मेरा संग आपके पुण्यका फल है। जैसा आपने कार्य किया है वैसा ही पूर्व में इनुमान६ किया था ! सीता के लिये वायुपुल हनुमानले जो काम किया था, उसके लिये, हे महीदेव ! उस सीता के समाचार के देवेषालेको मैंने भीज और त्यलोकका आधिपत्यं भी दिया था । हे तपस्वियों में श्रेष्ठ मुनि ! उससे भी आपका काम श्रेष्ठ है। इस प्रकार अनेकौं सुन्दर शुभ दाक्योंको काइकर भगवान्ते पूछा-शापके ऋक्ष (पाश्र्व) में सूर्यके जैसे पया शोभता हैं ।

  • यहां पर ९४ लाख जीवौंकी योनि लिखी है, किन्तु अन्य स्थानों में ८४ः
, लाख की गणना है । गोस्वामी तुलसीदासजीने लिखा है :-“ आकार

(१९३)