पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/५७

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

आरुरोह गिरेः शृङ्ग पुण्यं परमपावनम् । चम्पकाशोकपुन्नागचूतधात्रीसमन्वितम् ।। १८ ।। चन्दनागरुहिन्तालरक्तचन्दनभास्वरम् चमरीमृगसाहस्र कस्तूरीमृगसेवितम् ।। १९ । शुककोकिलसन्नादमयूरस्वनशोभितम् । एवं मनोहरं शृङ्गमारुह्य कनकोपमम् ।। २० ।। मृगयामास तत्तीर्थ चिह्नितस्तव तत्र वै । ददर्श सरसीं तत्र निर्मलस्फटिकोपमाम् ।। २१ ।। तिलकाशोकपुन्नागबकुलैश्च विशोभिताम् । रम्योपवनसंशुद्धां रक्तराजीवराजिताम् ।। २२ ।। धां तीरस्थतरुभास्वराम पुष्पिताम्रवनोपेतां केकिकेका रवाकुलाम् ।। २३ ।। तिलकैबीजपूरैश्च वरैः शुक्लद्रुमैस्तथा । पुष्पितैः करवीरैश्च भाण्डीरैर्निचुलैस्तथा ।। २४ ।। अशोकैः सप्तपर्णेश्च केतकैरतिमुक्त । अन्यैश्च विविधैर्तृक्षः पुष्पितैश्च मनोहराम् ।। २५ ।। स्वामिपुष्करिणीं दृष्ट्वा प्रमुमोद महामनाः । यह सुनकर वह विमलबुद्धि वाले शोकत्यक्त होकर उस परम पुण्य पवित्र पर्वतशिखर पर चढ़ गये, जो चम्पा, अशोक, पुन्नाग, आम, हरें आदि वृक्षों से समन्वित, चंदन, अगर, हिंताल, लालचन्दन आदि से सुशोभित, चमरिका, सुरही गाय, हरिण तथा हजारों कस्तूरीमृग से सेवित और सुग्गे, कोयल, मयूर आदिकों के सुन्दर, मछुर एवं ललित शब्दों से गुञ्जित हो रहा था । ऐसे मनोहर सुवर्ण सदृश श्रृंग पर चढ़कर उपरोक्त चिन्हों. द्वारा उस बताये हुये तीर्थ को वे खोजने लगे ।