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ब्रह्मा चन्द्रमाके समान प्रकाशवाले इंसपर चढ़े, तब तरह-तरहके विमानों पर वधुएं चढ़ीं । हे राजा ! घण्टा के शब्द और चामरसे ब्रह्मा शोभते लये । हे धीर ! हाथी, घोड़े और रथपर बैठे हुए वीर आसनवाले शूरगण नाना प्रकारके आयुध धारण किये हुए और ऊँची ध्वजा और लम्बी पताकाओंॉसे शोभित थे । हे राजन् ! इनके बीच में ब्रह्मा आकाश में तारागणोंके बीचमें चन्द्रभा जैसे शोभते थे । (४३) श्वेतच्छत्र हेमदण्डं रत्नकुम्भयुतं धृतम् ।। ४४ ।। योजनत्रयविस्तीर्ण दशलक्षजनैर्तृतम् । नभः प्रकाशयामास देवदेवस्य वै तदा ।। ४५ ।। सोनेछे उण्डेवाले, रत्नके कलशसे युक्त. तीन योजनतक फैले हुए, दश लाख मनुष्यों से घिरे हुए, दैवताओंके देवा ब्रह्मा द्वारा धारण किये गये श्वेतच्छत्र ने झाकाशवको प्रकाशित कर दिया। {४५) अवादयन्भहाराज वाद्यानि विविधानि च । भेरीश्च नवसाहस्र दुन्दुभीनां शतत्रयम् ।। ४६ ।। मृदङ्गपणवान् ढक्कामड्डुनिस्साणडिण्डिमान् । गोमुखान्मुरजान्वीणास्तथा वै झईरादिकान् ।। ४७ ।। बर्बरैः शतशृङ्गेश्च दीर्घश्रृङ्गश्च सस्वरैः । सप्तस्वरैः सप्तरागैः सपणिामपि मोहकै: ।। ४८ ।। फूत्कारैश्च वषट्कारैध्र्वनयद्भिश्च वारिजान् ! गन्धर्वेगाननिपुणैः स्वरभेदविचक्षणैः ।। ४९ ।। वोणादण्डस्थसूत्रैश्च वादयद्भिः सुखावहैः । नर्तकैनटकैश्चैव हाहाहूमुखैर्तृतम् ।। ५० ।।