पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/५८८

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एवं वदति तच्चारे पुनरेकोऽभ्यभाषत । पर बोला-हे गोविन्द ! आपके पुत्र अ1 जायेंगे; वे गंगाक्षो पार करते हैं। उस परके ऐसा कहते ही पुनः एक दूसरा चर आकर बोला । द्वितौय उवाच---- गोदावरीीं तरति ते पुत्रः पौरजनैः सह ।। ६६ ।। स दूतवचनं श्रुत्वा किञ्चिद्धास्यमुखोऽभवत् । तदाऽऽजगाम गरुडः पक्षिराङ् ब्रह्मचोदितः ।। ६७ ।। प्रणिपत्य श्रीनिवासं प्रोवाच च वश्वस्तदा । दूसरा वर बोला- आपके पुत्र मनुष्यों के साथ गोदावरीको पार करते हैं । यह श्रीनिवास उस दूतके वचन सुनकर प्रसन्नमुख हो गये। उसी क्षण ब्रह्मा शेजे हुए गरुड़ आये, और श्रीनिवासको व्रणाम कर यह वा बोले । (६७) कृष्णा तीत्वा तु ते पुत्रः श्रीशैलमुपगम्य च ।। ६८ ।। अहोबिल चाससाद तत्राज्ञप्तोऽहमागतः' । इत्येवमुच्यमाने तु गरुडेन महात्मना ।। ६९ ।। तत्क्षणेनैव राजेन्द्र ! विष्वक्सेनोऽभिवन्द्य च । विनीतो वाचमूचेऽथ श्रीनिवासं परात्परम् ।। ७० ।। गरुड़ बोले-आपके पुत्र कृष्णाको पार कर, श्रीशैलके एास आकर अहोबिलके पास बैठे है और वहीसे होंने आशा, दी है कि मैं आ गया हूँ । (७०)