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588 देवताओंके यज्ञ करानेवाले हैं । देवताओं और ऋषियोंका सम्मान फरवेका शंकारको, देवताओंको घुलानेका कुभार (कार्तिकेय) को, स्वागतका कामदेवको बीड़ा दिया, और तब अग्निको बुलाकर कहा-हे हृश्यवाइन ! आप पाक करनेसा बीड़ा लीविये । ऋषियों और देवताओंको आपही का पाक पउन्ह है। इसलिये स्वधा और स्वाहाडे साथ आप पाक करें । इस प्रकार आशा पाये हुये यज्ञमूर्ति अग्नि “ ऐसा ही होगा” यह भगदान से बोले । । ततः स प्राह वरुणं जलार्थ सर्वदेहिनाम् । दूष्टानां दण्डने राजञ्छिष्टानां परिपालते ।। १५१ ।। यमं स कल्पयामास सुगन्धे वायुमादिशत् । धनदाचे ब्राह्मणार्थे वस्त्रालङ्कारदापेने ।। १५२ ।। कुबेरं योजयामास भगवान्नृपसत्तम । प्रदीपधारणे राजन्निशाकरमयोजयत् । १५३ ।। वसून्सन्देणयामास भाण्डानां शुद्धिकारणात् । ग्रहांश्च द्रोणपात्रेषु न्ययोजयदरिन्दम ।। १५४ ।। एवं संशासिताः सर्वे पुराणपुरुषेण च । आज्ञामादाय तेऽभूवन् सर्वे स्वस्थाः स्वकर्मसु ।। १५ ।। ततो वाक्यमुवाचेदं दूह्मा लोकपितामहः । तब उन्होंने जल के लिये वरुणको कहा ! हे राजन !.दुष्टोंको दण्ड देवे और, सज्जनों का परिपालन करवे के लिये ऽन्होंने यमको, सुगन्ध के लिये वायुको, धनवान करवे के लिये और ब्राह्मणोंको वस्ल अलङ्कार देचे के लिये कुबेरको, दीप धारण के लिये निशाकर (चन्द्रमा) को और पात्रोंको शुद्ध करने के लिये अष्टवसुओंको नियुक्त किया । हे शत्रुदमन ! ग्रहोंको द्रोणपात्र (कठौता) शुद्ध करने के लिये नियुक्त किया । पुराण पुरुषसे इस प्रकार आशा मिलतेपर दे सब अपवे-अपने कामों के लिये सावधान हो गये। तब लोकपितामह ज्ञह्मा. यह