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592 स भातोर्वचनं श्रुत्वा भानुमाह मनोगतम् । सब इस उपायको सुनकर मुस्कराते हुए, भक्ति से नम्र शरीरवाले एवं भय और भक्ति से युक्त सूर्यवाले हे प्रभु ! लक्ष्नीदेवी सक्ष लोकोंमें सबको जानलेवाली ऐसी प्रसिद्ध है। वह हृदय की सब बातोंको जानती हैं। वह मेरा विश्वाश करेंगी और हे हरि ! बिना रोगवाले आपके रोगको किस प्रकार छहुँगा ? भगवान सूर्यले वचन सुनकर उनसे अपने मनकी बात बोले । श्री भक्षवानुवाच 'वन्मायया मोहिता सा भविष्यति न संशयः ।। १८५ ।। इत्युक्तः प्रणिपत्याथ वासुदेवं रथे स्थितः । करवीरपुरं गत्वा यथोक्तं तत्तथाकरोत् । १८६ ।। श्रीभगवान बोले-दक्ष मेरी मायासे अवश्य मोहिता हो जायेगी, इसमें सन्देह नहीं है। ऐसा फहे जानेपर प्रणामकरछे, वासुदेव के रथपर बैठकर, करवीरपुरमें जा सूर्यवे बैसा ही किया जैसा कहा गया था । (१८६) करवीरपुराच्छेषाचलं प्रति रमागमनम् ई१८४) सा तद्वचनभाकण्र्य यथाऽदेश तदा रमा । रथमारुह्य खेदेन भानुवाक्यादरेण सा ।। १८७ ।। सम्प्राप्ता वायुवेगेन रवियुक्ता रखापतिम् । तदागमनवार्ता च श्रुत्वा तस्मिन् क्षणे हरिः ।। १८ ।। जगाम दर्शनापेक्षी ह्यशक्त इव सम्मुखम् । तादृशीमाकृतिं प्राप्य तदद्भुतमिवाकरोत् । १८९.।।