पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/६१२

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

84 (श्रीनिवास) ने पुष्ट शरीर इौकर इसका कुशल पूछा और उसने भी ऋरिफा कुशल पूछा । हे राजन ! तब देवताओं से मस्कृत सूधा सध लोकोंके पितर दोनों लक्ष्मी औद नारायणले इस प्रकार सुख प्राप किया । {१९४) रमायै श्रीनिवासकथितङ्कावतीपरिणयोदन्तः यां मोहयति गोविन्द ! तव माया दुरत्यथा ।। १९५ ।। भानुना मणि गोविन्द ! कर्म चित्रं त्वया कृतम् । त्वन्यायामोहिताः सर्वे ब्रह्मशानादयः सुराः । १९६ ।। वक्षाभ्देशं वासुदेव समाद्याऽङ्खात्कारणम् । स यावचनं श्रुत्वा साध्वीमाह महीपते ! ।। १९७ ।। लक्ष्मीसे कहा हुआ पद्मावतीका विवाह वृत्तान्त श्रीलक्ष्मी धोखे-हे गोविन्द । व्यापष्टी अलम्य माया भुझे मोती है। हे गोविन्द सूर्यले द्वारा आपसे विदित्र काभ मेरे बारे में किया गया है; आपकी माया से ब्रह्मा, शिव इत्यादि सब देवता ओहित किये गये है । हे वासुदेव ! आज मुझे खुलासेके कारणरुपी उस धाशा को कहिये। हे महाप!ि विष्णु भगवान दे वक्ष्मीफे इस वचलको सुनकर उससे कहा । (१९७)

  • त्वया रासावतारे तु कथितं स्मर भामिनि ! ।

वेदवत्या विवाहस्य सम्प्राप्तः काल एष वै ।। १९८ ।। त्वत्सन्निधौ वोढुमेनां कामयेऽहं कलौ युगे ।' वदत्येवं हृषीकेशे साऽस्मरत्पूर्विको गिरम् ।। १९ ।। श्रीनिवास बोले-हे भामिनि ! रामावतार में अपने कहे हुए वषनको स्मरण करो, वेदवतीके विवाह का यह समय उपस्थित हुआ है । विवाह करकें कलियुगमें