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556 झुकादशोऽध्यायः लक्ष्मीकृत भगवानका, मंगल भूषणसाज ! प्रभु कुल देवन पूजना, ऋण लेना धनराज ।। १ ।। द्रव्य साज पाकाशिकी, कश्यप पूजन धम्र्म । व्रात साज ब्रातगमन, नभ नृप स्वागत कम् ।। २ ।। पद्मा-प्रभु दुर्गा मिलन, पाक पूजना द्वार । भोज समागम व्थाह विधि, धरणी पूजाकार ।। ३ ।। वियत पखादन प्रभ चरण, कन्यादान विधान । बाद विवाह बिदाइ वधु, भूषण दायज दान ।। ४ ।। बसन प्रतिज्ञा मास षट, अगस्त्येशके धाम । श्रवण विवाह विधान प्रभु, पूरक सब मनकाम ।। ५ ।। भगवतः पद्मादिकारितपरिणयाईमङ्गलाभिषेकक्रमः ततः किमकरोत्कृष्णः श्रीनिवासः सतां गतिः । तन्ममाचक्ष्व भगवन् ! विस्तरेण महामुने ! ।। १ ।। जनक बोले-हे भगवन महामुनि ! तव सन्तोंके वाश्रय श्रीनिवास कृष्ण क्या सिया, वह मुझसे विस्तार पूर्वक कहिये। (१) श्रीलक्ष्मीसहितः श्रीमाञ्छीनिवासः पितामहम् । अब्रवीत्प्रीतमनसा प्रयुञ्जानः प्रयोजदे ।। २ ।। uतानन्द बोले-श्रीलक्ष्मीके साथ श्रीमान् श्रीनिवास प्रसन्न मनसे ब्रह्माको काममें नियुक्त करते हुए बोले ।