पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/६३४

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। श्रीनिवास दोले-ब्रह्मा एक दिन में हुमारे दश अवतार कहे गये हैं । अपः अवतारके सहय घरसे मैं धन नहीं लाता हूँ; एवं हे राजन ! पृथ्वीपरछे धनको भी धपने घर नहीं ले जाता हूँ ! युग, सूलय् देण एवं अवस्थाके अनुसार निमित्तमाप्त होने से ही अभी आप ही धनद है। हे कुबेर ! देश-लके अनुसार जितना चाहिये उतना ही धन आप मुझ युगधर्मके अनुसरण करनेवालेको दीजिये । उनके वचनको सुनकर कुबेर यह वचन बोले । कुबेर उवाच 'युगानुसारिणस्तेऽद्य कथं दास्यामि चक्रभृत् ।। ११७ ।। यदि दत्तं त्वया पत्रं तदा दास्यामि ते वसु । अश्धनः सधनं लोके यथा काङ्क्षति माधव ! ।। ११८ ।। तथैव नरशार्दूल ! भगवाँलौकिकैः समः' । एवं तद्वचनं श्रुत्वा हरिह्माणमब्रवीत् ।। ११९ ।। कुबेर बोले-हे चक्रले धारण करनेवाले भगवान ! अवाप युषके अनुसरण करनेवालेको मैं किस प्रकार धन दूं ? यदि छाप पत्र (प्रमाण-पत्र, वशीका) लिख दें तो मैं आपको धन दूं। हे माधव! धनहीन लोग संसार में जिस तरह धनवानको चाश्ते है। उसी तरह, हे नरश्रेष्ठ! आप भगवान भी लौकिक्षे मनुष्यों के समान .ी चाहते है । इस प्रकार उनके वचनको सुनकर हरि ब्रह्मासे बोले । (१९) श्रीनिवास उवाच कथं लेख्यं मया पत्रमृणादाने वदाद्य मे' । श्रीनिवास बोले-ऋण देते के लिये मैं शिस प्रकार पद लिखू सो आज मुझसे कहो । (१२०) ब्रह्मोवाच 'ऋणग्राही श्रीनिवासो धनदायी धवेश्वरः ।। १२० ।।