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श्रीनिवासकी आज्ञा से कुबेरके द्वारा विवाहके हे राजन ! हरिने उस धनकी ढेरीकर देखञ्जर उसे कुबेरहे हाथ में वे दिया और शापानि लावे के लिये उनसे कहा । श्रीभगवान बोले- हे धनेश्वर ! सेर से पाप कर प्रस्थ, चावल, माष (उड़द), मुद्ग (मू), गेहूँ, गुड़, तैल, मधु, झीर, शंक्कैरा, घी, दधि, तथा उत्तरीय (चादर) के साथ अभूल्य अस्र और तिल, हींग, मिर्च, जीरा, सर्षप, अॅथी इत्यादि ले आये । ब्राह्मणियों के बस्रको हल्दी में रंगवा दीजिये और हे कुबेर ! कम्बल भी खरीद लाइये। देवाओंशी उत्तरीय और देवताओंको स्त्रियोंका साड़ी, उत्तम पूंगीफल, नागवलीके पत्र, इलायषी, लवंग, कपूर, कस्तूरीक्षा रस, कन्या के लिये मांगलीक सूत्र खरीदवा मंगाइये और पैरके अगूठा, अंगूठी इत्यादि तथा भेरे हाथों की अंगूठी, हे कुवेर ५ वाज थीघ्र बनवाइये । इट प्रकार गोविन्दक्षे वचनको सुलकर इन्होंवै क्षण रमें बनवा दिया । (१३५)

  • त्वत्प्रसादेन गोविन्द ! सर्व सज्जीकृतं मया ।

पाञ्चार्थ पुण्डरीकाक्ष चियुङ्क्ष्वाग्निसत्तः परम्' ।। १३६ ।। कुबेर बोले-छे गोविन्द ! आपकी कृपासे मैंने सब कुछ सजा दिया है । हे पुण्डरीकाक्ष ! अव पा (रसोई) के लिये अग्निो नियुक्त कीजिये । भगवदाज्ञया वह्निकृतदिव्याक्षसज्जीकरणप्रकारः एवमुक्तः कुबेरेण श्रीविासः सतां गतिः । षण्मुखं प्रेषयामास वहेराह्वानकारणात् ।। १३७ ।। स गत्वा त्वरितं स्कन्दः शासनं ज्ञापथन्हः । सम्प्राप्तो वायुवेगेन सहितो जातवेदसा ! १३८ ।। ततः प्रोवाच भगवान् त्वरितं हव्यवाहनम् ।