पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/६४१

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शेषाचलपरं ब्रह्मा इत्यादुि द्वारा किया गया कृश्यप इत्यादिकां सत्कार उसने जप करते हुए अग्निके भक्तों तथा वेदके विद्वान श्राह्मणोंके पास बहुत तेजी से आक्षर कहा कि हे देवता एवं ब्राह्मणो ! पाक तैयार हो गया है, ठिये । इस प्रकार उनसे बुलाये गये क्षाश्यप, अत्रि, इत्यादि ऋषि और देवसागण उस पाषा विभज्य तत्र विधिवत्पात्रभूतान् पृथक् पृथक् । पंक्तीश्च कारयित्वाऽथ तारतम्यानुसारतः ।। १५६ ।। पात्राणि व्थस्तृणोच्छम्भुः पात्रापात्रविचक्षणः । पाण्डुतीर्थ समारभ्य श्रीशैवावधि भूसुराः ।। १५७ ।। देवाश्च निबिडीभूतास्तस्मिन् कृष्णमहोत्सवे । ' ', स्थिता देवद्विजास्तत्र स्वस्वपात्रान्तिके पृथक् ! १५८ ।। तदाऽऽह भगवान् राजन् ब्रह्माण चतुरादनम् । योग्य और अयोशय के जानने चतुर सिञ्जीने उन सब गिन्तोंको विधिवत पृथकपृथक बांटकूर, छोठाई, बडाई के अनुसार पंक्ति बनवाकर पात्र परस दिया । पापडूतीर्थसे लेकर श्रीशैलतक वे ब्राह्मण एवं देवतागण, उस कृष्णले महोत्सव में, सधन एवं एछद्ध होझर, “अपचे अप३. पांत्रॐ समीप पृथक् पृथक् बैठे गये। हे राजन ! तब भगवान् दे. चार मुखवावे ब्रह्मासे कहा . । ... . . . (१५८) श्रीभगवानुवाष झनर्पितं न दातव्यं देवानां च द्विजन्मनाम् ।। १५९ । । श्रीभगवान बो-विना अर्पता किये देवताओं और ब्राह्मणोंको नहीं देना वाहिये । (१५९)