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शूराश्च कृतविद्याश्च धृतशस्त्रस्वचाणयः । पितामहं पुरस्कृत्य जग्मुर्दारायणान्तिकम् ।। १८६ ।। तं दृष्ट्वा सर्वदेवेशं भगवानाह भूपते ! । गरुड़ बोले-हे ब्रह्मा ! वस्तों शौर अलङ्कारौं से सजफर, इन्द्रमा के समान चलिये । बड़े और अद्भुत वाजाओंको बञ्जवाइये तथा बड़े भेरी (नगारा) को हाथीपर रखकर बजवाइये । द्श्रुत बाहौं, रथों और आल्दोविकाओं (ीलियों) की भी राजेन्द्रकी पुी जानले लिये शीघ्र सजवा दीजिये : गरुड़के वचनको सुनकर गंरुड़याहन हरिछे ब्रह्मा देवताओंकी सेना, हाथी, घोडे और बैलों तथा पैदल शूरोंके सजे हुए मण्डलका संचालन किया । शस्त्रों और वस्त्रोंको हाथोंमें (१८७) विलम्बः क्रियते कस्माद्गंदार्थ पितामह ! ।। १८७ ।। चियोजय बलं सर्वं राजधान्यै नृपस्य च । । । इत्थं हरेर्वचः श्रुत्वा वासुदेवात्मजोऽब्रवीत् ।। १८ ।। श्रीनिवास घोले-हे ब्रह्मा ! चलने विलम्ब क्यों करते ?? राजाकी राजधानी में नलनेके लिये सब सेनाको आशो दो । श्रीनिवास के इस प्रकारके वचनो सुनकर ब्रह्मा द्रोले । . (१८८) ब्रह्मोवाच 'सज्जीकृतं बलं सर्व धृतायुधमरिन्दम । उत्तिष्ठ पुरुषश्रेष्ठ समारोह खगेश्वरम् ।। १८९ ।। ब्रह्मा बोले-हे शत्रुझलो दमन छरनेवाले !. वायुध-धारण किये हुए सभ सेवाएँ याज दी गयी है । हे पूरुष श्रेष्ठ ! अठिये और गरुङ्कपर चॉये ! (१८९)