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तोण्यान बोले- हे ट्रथडौश भुकुन्द भूति ! यह शरीर और राज्य सभी आयही का है । झाप मेरे अन्धके लिये सांसारिक मनुष्य जैसा भोहित होते हैं । अर बनवाया और ऋषियों, बेद विद्वानों, देवताओं, देवताओंकी स्त्रियों एवं अन्न वाश्लेवाले ब्राह्मणोंको अन्न हो दिया ; उन लोगोंने स्वयं ही बनाकर भक्षय छन्न और इससे युक्त भोजन किया । श्रीनिवास के लिये तो राजेन्द्रले आदरके साथ दहुत प्रकारले अन्न और उरद एवं भक्षुके साथ भक्ष्य पदार्थ भेजा और उस श्रेष्ट राजाने स्वयं क्षाक९ 'श्रीनिवासके भोजनको प्रस्तुत किया । तत्पश्चात उस पुरुष श्रेष्ठ श्रीनिवालने परपश्धि लक्ष्यौ, माता बकुला, शेष और गरुडके साथ भोजन किया और हे राजन ! जः माता लक्ष्मीपति, श्रीनिवासूको अलौकिक वस्त्र देकर वह राजा अपने घर श्रीनिवासकी आज्ञासे ग्या । (२८४ ) गते संज्ञि भहाराज ! श्रीनिवासस्त्वरान्वितः। निद्रां चकार विधिदन्निदर्दोषोऽपि सुखासने ।। २८५ ।। एवं गता च सा रात्रिः प्रभातसमयोऽभवत् । पूर्वदेवगुरोर्वारः सम्प्राप्तो दशमीदिने ।। २८६ ।। समुत्थितो वासुदेवः कृतमङ्गलमज्जनः । वसिष्ठमब्रवीद्राजन् ! भगवान् वेङ्कटेश्वरः ।। २८७ ।। हे महाराजा ! राजा के चले जानेपर शीघ्रतासे विना दोषवाले श्रीनिवास विधिपूर्वक सुखप्रद ठाउनपर सो गये । इस प्रकार यह रात्रि बीत गयी और प्रधातका समय हुआ । हे देव! दशमीको शुक्रवार प्राप्त हुआ । हे राजन ! मङ्गल स्नान किये हुए श्रीवेङ्कटेश वासुदेव श्रीनिवास उठकर वसिष्ठसे बोले । 'सहैव भोजनं कार्यं लक्ष्म्या च परमेष्ठिना । धात्रा पुरोहितेनापि वयं पञ्चान्नवर्जिताः ॥ २८ ।।