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4, तुमष्टो यासुदे के पू जमले निभित ही झाथ इ’, जो मोती आभूषणों से देवताक्षों दैवतः श्रीनिबा कं शुभ इस प्रभाव साक्षात च जी ! ततः पुरोहिताज्ञप्तः पुराणपुरुषोत्तमम् ।। ३१८ ।। गजमारोपयद्वाज्जा जामातरमामयम् । सहितो वासुदेवस्तु ब्रह्मणा शम्भुना तथा ! ३१९ ।। कुबेरेणाहिराजेनं गरुडेनाझिना तथा । बायुना वरुणेनापि यमेन् मरुतां गणैः ।। ३२० ।। वसिष्ठादिमुनिश्रेष्यैः सदारैः ससुतैस्तथा । जगाम राजभवनं रत्नतोरणमण्डितम् ।। ३२१ । । नानाजनसभाकीर्ण नानालङ्कानमण्डितम् । महावाद्यस्वनैर्युक्त दीपायुतविर्दतिः ।। ३२२ ।। श्रीनिवासका. अपने परंकरों के साथ राजाके (३१७) सब पुरोहित से आज्ञा किये आनेपर दिना दोष छो. पुराण पुरुषोत्तम जामाता को राजाने हाथीपर बैठाया और श्रीनिवास भी श्रह्मा, शिय, कुबेर, शेष, गरुड़, अश्लि, वायु, भरुण, यम, मशत्, वसिष्ठादि श्रेष्ठभुनि, स्त्री और पुत्रके साथ, रामोंन्ने तोरणले शोशिक्ष, त भनुष्यों से भरा हुआ, बहुत अलङ्कारोंले शोभित, बड़े-बड़े बाजाओं के ब्दोंसे पूरित, १वं दस हजार दीपसे प्रकाशित राजाके {३२)