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49 सर्वपापहरा सैव प्रारब्धस्यापि कर्मणः । संहृतौ तु क्षमा सैव सर्वसम्पत्प्रदायिनी ।। २४ ।। तस्या व्यूहप्रभेदास्तु लक्ष्मीः कीर्तिर्जयेति च । तत्र या व्यूहलक्ष्मीः सा मुग्धा कारुण्यविग्रहा ।। २५ ।। अनायासेन सा लक्ष्मीः सर्वपापप्रणाशिनी । सर्वेश्वर्यप्रदा नित्यं तस्या मन्त्र मिमं शृणु ।। २६ ।। सनत्कुमार कथित व्यूह लक्ष्मी मन्त्रोद्धार क्रम सनत्कुमार ने कहा :-कृपाकटाक्ष से पूर्ण नेत्रवाली, पूर्ण चन्द्रमा के समान मुखवाली, हरि भगवान की प्रिया, महालक्ष्मी देवी ही सर्व लोकों की जननी हैं। ब्रह सब पाप को हरनेवाली तथा कम्मियों के प्रारब्क्ष को भी संहार करने में समर्थ हैं । वही सभी सम्पत्ति को देनेवाली हैं । कीर्ति, ज्या, लक्ष्मी यह तीन अवान्तर स्वरूप उसी देवी के हैं। उन में जो व्यह-लक्ष्मी देवी हैं वही मुग्ध एवं परम कारुणिक हैं। वह अनायास सब तरह के पापों को नाश करनेवाली तथा सभी ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली है। उनका यह मन्त्र हैं । इसे ध्यान से सुनी । (२३-२६) वेदादि भायै मात्रे च लक्ष्म्यौनतिपदं वदेत् । परमेति पदं चोक्त्वा लक्ष्म्या इति पदं तत ।। २७ ।। विष्णुवक्षस्थितायै स्यान्माया श्रीतारिका ततः । वह्निजायान्तमन्त्रोऽयमभीष्टार्थसुरदृमः ।। २८ ।। द्विभुजा व्यूहलक्ष्मी स्याद्बद्धपद्मासनप्रिया । श्रीनिवासाङ्गमध्यस्था सुतरां केशवप्रिया ।। २९ ।। तामेव शरणं गच्छ सर्वभावेन सत्वरम् ' । इति मन्त्रमुपादिश्य ददृशे न च कुत्रचित् ।। ३० ।। “ॐ श्री ॐ नमो परम लक्ष्म्यै, विष्णुवक्षस्यितायै माया श्री तारकायै वह्निजायै” यह महालक्ष्मी का महामन्त्र सभी अभीष्ट के लिए कल्पवृक्ष हैं । तुम उसी