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स्मृत्वा श्रीदेवकीपुत्रस्तदद्भुतमिवाभवत् । वसुषा बोला-संसार में. धन् इमानेवाले माता और बालकको छोड़कर व जाते हैं; हे भगिनी ! उसी प्रकार तू इमको छोड़कर कहाँ जाती हो । हे राजन ! इस प्रसंगसे वहांप कश्यपादि ऋषियों और देवताओंको भी अत्यात कठिन दुःख हुआ । रोते हुए राजाको देखकर सज्जल्की गति देवकी के पुत्र स्वयं गोविन्द श्रीनिवास ही, अर्जुन की प्यारी अपनी भगिनी को स्मरण कर रोने क्ष-यह सबको अद्भुत मालूम हुजा ! (४०२} ' 585 इत्थं कृत्वा लोअरीतिमैरावतमुपास्थितः ।! ४०३ ।। पद्मावत्या तया सार्ध सर्ववाद्यसमन्वितः । ग्रामं प्रदक्षिणीकृत्य रमया सहितो हरिः ।। ४०४ ।। स्वनिवेशगृहं भेजे पद्मासनभवादिकैः ! . इस प्रकार लौकरीति समाप्त कर श्रीनिवास ऐराघशौ पास आये और सब बाजाओं सहित उस पद्मावती, लक्ष्मी, एवं ब्रह्मा और छिबके साथ ग्राम की (४०४) ततो हरिः श्रीनिवासः स्वस्थानं गन्तुमैह ।। ४०५ ।। गरुडस्कन्धमारुढः पत्नीं पद्मावतीमपि ! । मारोपयन्वरारोहामन्योन्यं परिरभ्थ च ।। ४०६ । गरुडस्कन्धमारुढो गन्तुं स्वस्थानमुत्सुकः । हरिरामन्त्रणार्थ तुं श्वश्रूश्वशुरयोस्तदा ।। ४०७ १३ । पुनगृहं सम्प्रविश्य गभनेच्छुरभूदथ । श्वशुरौ पर्यपृच्छच्च साष्टाङ्ग प्रणिपत्य वै ।। ४०८ । .. ४: - .

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