पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/६९१

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कोटेिकल्याप्रदानेन यावद्भूमिप्रदान्तः । यत्फलं लभते देही तत्फलं श्रवणादरात् ।। ४४४ ।। 573 ये उत्सवं कारयन्ति वैवाहं बेङ्कटेशितुः । तस्योत्सवो भवेद्राजन् वेङ्कटेशप्रसादतः ! ४४५ ।। श्रतानन्द बोले-है जनेश्वर ! हे राजन इस विवाहकै अध्याय के महत्व (भहात्म्य) को बो सुनते हैं; उनके भाग्यक्षा उदय विस्तारके साथ कहता हूँ; सुनिः । झरोड़ों कन्या एवं सम्पूर्ण पृथ्वीदानसे जो फल अनुष्यको मिलता है वह फल इसको छादरपूर्वक सुननेसे मिलता है । हे राजन ! जो श्रीवेङ्कटेश के विवाह का उत्सव करवाता है उसको श्री वेङ्कटेश की प्रसन्नवासे उत्सव ही होता है। (४४५) विवाह का अध्याय सुन्नेका फल इति ते कथितं राजन् विवाहचरितं हरेः । श्रुणुयाच्छावयेद्वाऽपि सर्वाभीष्टमबाप्नुयात् । शुभदं श्रुण्वतां चैव सर्वेषां मङ्गलप्रदम् ।। ४४६ ।। 6 हे राजन । मैंने श्रीविवासका विवाह चरित तुमसे कहा है। . इसकी जो छोई सुनता और दूसरेको सुनता है उसके सब मनीरथ पूरे होते हैं; सब सुननेवालोंको यह शुछ देनेवाला और मंङगल दैवेदाला है । (४४६) इति श्रीभविष्योत्तरपुराणे श्रीवेङ्कटाचलभाहात्म्ये श्रीनिवासविवाहादिवर्णनं नामैकादशोऽध्यायः