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83 होगा ; जो नहीं जीतेगा वह चला जायगा ! ऐसा विश्वय करडे जीसके इच्छुछ दोनोंने युद्ध क्षारम्भ किया । (४८) नानादेशकिरातांश्च क्षत्त्रियान्युद्धदुर्मदान् ॥ ४९ ।। आवाहयच्च राजेन्द्र तोण्डमान्युद्धदुर्मदः। अक्षौहिणीद्वयं तेन सैन्यं सम्पादितं नृप ।। ५० ।। तावद्राजकुमारेण मिलित सैन्यमक्षयम् । है राजेन्द्र ! युद्ध में तोण्डमान अनेक देशों किरातों एवं क्षत्रियोंका आह्वान किया । हे राजा ! उसने दो अक्षौहिणी सेना इकट्ठी की और उतनी ही भक्षय सेना राजकुमार भी इकट्ठी की ! [५०) साहयाशया श्रीनिवासै प्रति तोण्डमानवासुदानागमनम् नारायणपुरप्रान्ते दक्षिणे रणमेदिी ।। ५१ ।। कृत्वा साह्याशया राजंस्तौण्डमान्नाजनन्दनौ । सम्प्राप्तौ वासुदेवस्य चरणौ शरणं गतौ ।। ५२ ।। तावागतौ राजकुमारराजौ दृष्ट्वाऽतिवेगेन स चालिलिङ्ग । संभाष्य दत्वाऽपि च रत्नृपीठं प्रीत्याऽतिहृष्टो वचनं बभाषे ।। ५३ ।। श्रीनिवासके समीप एक ही आशयसे तोण्डमान और नारायणपूरके बाधूर दक्षिणर्मे पास ही युद्धभूमि वनाकर तोण्डमान छौर बसुयान सहायताकी इच्छासे श्रीनिवाउके पास ग्रामे और उनकी शरणमें गवे । उन दोनों आये ठुए राजकुमारोंको देखकर श्रीनिवास बहूत जल्द बालिङ्कगन कर, रत्नोंकी पीठ (पीढ़ा) भी देकर प्रीतिसे वानन्दपूर्वक दचन बोवे । (५३)