पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७०६

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688 . हे राजन ! वसुवानने सीधे जानेवाले अर्धचन्द्रकार दश धाणों से राजेन्द्र तोडमान को मारा । श्रीनिवासनामक तोण्डमान राजा के बालका पुलने . पचास जार बाण श्रीनिवास के हृदयें, सब मनुष्योंको आश्चर्यन्वित करते हुए. गोरखे मारा ! राजर्षि तोण्डमानते भी वसुदान और माधवको मारा, श्रीनिवास ने दण बाणों से पालक राजपुत्रको मारा • वह चकित ही गया । हे राजेन्द्र ! चार बाणों से चारो घोड़ों । एक बाणसे सारथी एवं छन्न तथा पाँच वाण से रथको भारा । वह महानुमव राजपुत्र रथ से उतरछर् इन्द्र के वज्वरे तुल्य तीन धारवाले चक्रको खेरुर कृष्ण बौर घोड़ेके हृष्य में सारा । (७६) रणरङ्गे मूर्छितं श्रीनिवासं दृष्ट्वा पद्मावत्यनुशोचनम् तेनातिविद्धो निपपात भूमौ चक्रेण चक्राङ्कितबाहुदण्डः । शेषाचलेशो रणरङ्गगामी मनुष्यभावेन विडम्बयञ्जनान् ।। ७ ।। भूछभुिपागम्य हयोत्तमाद्धरि र्यथा मनुष्यो रणरङ्गमध्यतः । तथा ह्यसौ देवगणस्य मध्ये सविस्मयोत्फुल्लविलोचनस्य ।। ७८ ।। तदा प्राकारमारूढा राजपुत्री हरिप्रिया । अगस्त्यमब्रवीद्राजंश्चक्रपाणेनिपातनम् ।। ७९ ।। रणभूमि में मूर्छित श्रीनिवास को देखकर पद्मावतीका सोचना शेषाचल के स्वामी, रणभूमि.में जानेवाले तथा चकसे चिह्नित याहूदण्डदाले श्रौनिवास उस चक्रसे विधे जाने पर, मनुष्य भाव से लोगों को मोहित करते हुए, ', नृछित इो उत्तम घोड़े पर से, जैसे मनुष्य रणभूमि के मध्य में गिरता है, विस्मयसे भरे हुए चेत्रदाले देवतावों के बीच में वैसे ही पृथ्वीपर गिर पड़े । (छत) पर चढ़ी हुई श्रीनिवासकी क्रिया राजपुी वकपाणि के गिर जनकी बात तब प्रका ९)