पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७१६

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

त्रयोदशोऽध्यायः तोण्डमान नृपराजको, दिव्य स्वरूपज्ञान । नम्र स्तुति भगवानकी, प्रभु मन्दिर निर्माण ।। १ ।। पूर्वजन्म वृत्तान्त कहि, प्रभुका अन्तर्धान । तेरहवें अध्याथमें वर्णित विविध विधान ।। २ ।। तोण्डमान्कृतदिव्यस्वरूपज्ञानपूर्वक श्रीनिवासस्तुतिः ततः किमकरोत्कृष्णः शतानन्द नृपश्च वा । तन्ममाचक्ष्व योगीन्द्र ! राज्ञस्तच्चरितं महत् ।। १ ।। तोण्डमानका श्रीनिवासकी स्तुतिकरना जनक बोले-हे शतानन्द ! तज्ञ श्रीनिवास वा राजादै क्या क्रिया सो हे योगीन्द्र ! उस राजाके धड़े चरितको कहिये । (१) कदाचिद्वेङ्कटेशस्य दर्शनार्थ नराधिपः । एक एवाधिगम्याथ त्वाम चरणौ हरेः ।। २ ।। तं दृष्ट्वा राजशार्दूलमालिङ्गयाह वचो हरिः । शतानन्द बोले--किसी समय श्रीवेङ्कटेशके दर्शनकेलिये राजा अकेला ही छाकर उनके चरणों में प्रमाण किया । श्रीनिवास उस श्रेष्ठ राजाको देख और अलिठग्गन करके वचन शोले ।. श्रीनिवास उवाच---- क्रियागमनकार्य ते तन्ममाचक्ष्व भूपते ! ।। ३ ।। (३)