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700 हे स्वामिन ! अच्युत, गोविन्द, पुराणपुरुषोत्तन ! आप लीला के लिए मनुष्य दरीर धारण करनेवाले एवं प्रकृति द्बारा वहीं बनाये गये शरीरवाले है ! विद्वानगण आपहीको सृष्टि, स्थिति और नाशका कारण एवं प्रकृतिका उत्पत्ति स्थान बताते हैं। हे देव ! संसारको जलमग्न कर, षडेला हो, करोड़ों जीवरूपी धनसे अपनी उदरको भरते हुए, हजारों शिर हजारों वेत्र एवं हजारों पैरवाले पुरुषरूप तथा सुन्दर शरीरवाले होकर लक्ष्मी के साथ रमण करते ही । आपले मुख से ब्राह्मण, बाहुसे क्षत्रिय, जंधाओं से वैश्य एवं पैरसे शूद्र पैदा हुए है ऐा कहा जाता है। छापही सब लोकों योगियों और देवताओं के भी स्वामी है। छन्: ौर बहिः सृष्टि करनेवाले भी आप ही हैं । (११) तमः श्रीवेङ्कटेशाय वयो ब्रह्मोदराय च । नमो नाथाय कान्ताय रमायाः पुण्यभूर्तये ।। १२ ।। नमः शान्ताय कृष्णाय नमस्तेऽद्भुतकर्मणे । अप्राकृतशरीराय श्रीनिवासाय ते नमः ! १३ ।। अनन्तमूर्तये नित्यमनन्तशिरसे नमः । अनन्तबाहवे श्रीमन्ननन्ताय नमो नभः ।। १४ ।। सरीसृपगिरीशाय परब्रह्मन्नमो नमः । श्रीवेङ्कटेशको प्रणाम है । ब्रह्मको उदर में रखनेवाले का प्रणाम है । लक्ष्मीके स्वामी दीर पुण्यमूर्तिको प्रणाम है । शान्त श्रीकृष्णको प्रणाम है । अद्भुत कर्मवालेको प्रणाय है। प्रकृतिके नहीं बनाये हुए शरीरदाले आप श्रीनिवासको प्रणाम है । अनन्तमूर्तिको सदा प्रणाम है । अनन्त शिरवाडेको प्रणाम है। अनन्त बाहुवाले श्रीमान् अतन्तको प्रणाम है । शेषादल स्वामी परब्रह्मको प्रणाम है। - (१५) इति स्तुत्वा श्रीनिवासं कमनीयकलेवरम् ।। १५ ।। विरराम महाराज राजेन्द्रो रणकोविदः । स्तोत्रेणानि सुप्रीतस्तोण्डमातकृतेन च ।। १६ । ।