पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७२७

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तस्त्वं लार्दभौभः सन् ६ज्यश्रोगमुपैष्यसि । कन्याश्चानप्रसङ्गश्च भविष्यति न संशयः ।! ६५ ।। तस्माद्देहं त्यजालैव निःाहारोऽतिनिर्मश्वः । सुधर्मराजतनो राआऽऽकाशानुजो भः ।। ६६ ।। इत्युक्तो दासुदेवेन ततुं तत्रैव सोऽत्यजत् । स त्वभद्याका राजानुजोऽभूर्धार्मिको नृपः ।। ६७ ।। इति ते कथितं पूर्वजन्मकृसमुद्भवम् ।। ६८ ।। श्रनिदा बोले-हे पुव रंगदास ! भतडरो तुम्हारा पालाझे हे पहापति ! देवता, राक्षस और भनुष्शों के डाश् ह सारा संसार भायासे कोहित है । तथापि सुम्हारा मन एश्चात्ता’ युक्त है इसलिए इन सव एोंको छुडानेघाली मरनेसे शुद्ध होकर पुनः दूसदे जभ्रमलें झुधर्मे#ा पूज़ होनर तोण्डदेश का स्वामि स्वामी होकर ॐधड मेरा भक्त होंगे अधिपति राजा होशर एोग पाशींगे :) तब तुम सार्वभौम (सम्पूर्ण पृथ्वीका कन्यादानदा प्रसंध भी होगा इसमें सन्देह आकाश राक्षका छोटा भाई होओ ; हरैि ऐसा कहे दश्वैपर उसने अपने शरीरको वहींप छोड़ दियः । वही तुप अकाशराजाका छोटा आई धार्मिछ राजा हुए हो । तभी तुमसे यह कूर वगोचे लिये इल्या गया था । यह मैंने तुम्हारे पूर्व जन्मके तोण्डमान्नृपशार्थनया भगवत्कृतनवीन्मन्द्रिप्रवेश गोविन्दवचनं श्रुत्वा तोण्डमान् राजसत्तभः । कूपं संशोधयामास स्वकृतं पूर्वजन्मनि ।।.६९ ।।