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देवैर्बह्मपुरोगैश्च स्तुवद्भिः स्तुतिभिर्हरिम् ।। ७७ ।। प्रवेशयामास वरं सुमन्दिरं काय? पद्यावतीं चापि मुदा महीपतिः समस्तलोकैर्मुनिभिर्महोत्सवैः ।। ७८ ।। राजा बोले-हे देव ! आपपेनिश्चय किया गया क्षव कुल सम्पूर्ण हो गया । हे जगन्नाय । जनrदैन् ! अपने मन्दिर अश्ये । राजा इस वयनको सुलक्ष९ श्रीनिवास नसे बोले-आएकी विज्ञसे सन्तुष्ट मैं अवश्य पीछे-पीछे आऊँगा ।

  • करनेवाले चजतेहुए बाजाओं और भगवान् की स्तुति करते हुए अहह्मः इत्यादि

देवताओं साथ आनन्दयुक्त राजाने सद्ध लोगों पुथिों के ७१थ पुराण पृहष श्रीनिवास और पद्मावतीको धूमधामा टात्र श्रेष्ठ सुन्दर मंदिरमें प्रवेश (७८) पुष्पाण्थवर्षश्च सुरापुराचा देवस्य मूध्न्यशु विमानवर्थे तत आनन्दनिलये तोण्डमानृपनिर्मिते । विमानाग्रये श्रीनिवासो रराज भगवान् हरिः ।। ८० ।। आनन्दजनकत्वातमानन्दनिलयं विदुः । यक्ष, गन्धर्व मनुष्य और उरग के साथ देवता, राक्षस इत्यादि और मुनिगण श्रीनिवास मस्तकपर श्रेष्ठविभानसे ठान्न्दपूर्वक धूलवर्षा कर रहे थे ! तोuerमान