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शूद चतुर्दशोऽध्यायः प्रभु दीपोत्सवनित्यता, झहमपरीक्षा वेद । वेव मूर्ति निर्मान विधि, प्रभु उत्सव बहु भेद ।। १ ।। कथा कूर्म द्विजराजकी, स्त्रीसुत जीवनदान ! देश गमन उस विप्रका, भीम कुम्भार वयान ।। २ ।। दर्शन भीम कुमार प्रभु, िवनय करन नैवेद्य । दम्पति प्राप्ति परम गति, यही यहाँ सुनिवेद्य ।। ३ । 13 ऋ ब्रह्मकारितदीपारोपणभगवदुत्सवप्रशंसा तदा वै भगवान् ब्रह्मा दीपद्वयंमकल्पयत् ।। १ ।। प्रार्थयामास गोविन्दं वरमेकुम्भृतामयम् । यावत्कलियुगं तिष्ठेत्तावद्दीपोऽभिवंर्धताम्' ।। २ ।। थवा विमानपतचं यदा वीपवित्ताशनम्' । उदाऽवतारः सम्पूर्ण इति मे निश्चितोऽवधिः'।। ३ ।। इति संस्मै वरं दत्त्वा स्रह्माणमवदद्धरिः । भगवान दीपोत्सव की प्रशंसा थतानन्द बोले-सन्न अभ्युदय की इच्ठावलेि ब्रह्मावे. जीवों के हित की प्रार्थना की कि अब तक कलियुग रहै तब सक ये दीप बड़े। जब गिरना हो, अब दीपका नाश हो, तब आपका अवतार पूरा हो-मेरा यश् निश्चय किया हुआ