पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७३६

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पृथङ्नामानि तासी वै चकार स महामतिः । उत्सवः श्रीनिवासाख्या त्वाद्याऽन्या चोग्रामिका ।। ३० ।। सर्वाधिकसमाख्याऽन्या लेखकाख्या तदाऽपरा । मूलमूर्तिरभूत्तासी मूर्तीनां चतुरात्मनाम् ।। ३१ ।। स्वयं श्रीवेङ्कटाधीशः सर्वात्मा जगदीश्वरः । देवानां कल्पयामास तत्तन्मूत्र्यभिभानिनाम् ।। ३२ ।। असङ्कीर्णानि कार्याणि तानि तानि विधिस्ततः । पञ्चातावपि देवानां तत्तन्मूत्र्यभिमानिनाम् ।। ३३ ।। चतुर्मुखेषु चतुरो वनस्येकं विधिस्तदा । अनुदध्यौ तदा तेच सर्वकर्ममहोत्सवे ।। ३४ ।। उत्सवे श्रीनिवासस्य यावाकर्मणि दीक्षितः । तेन निर्वर्तयामास विधिः ।। ३५ ।। यात्राकर्मोत्सवं श्रीनिवालकी आज्ञासे ब्रह्मद्वारा भगवान् की वा मूर्तियोंका बनाया जाना श्रीनिवास बोले-हे पुत्र ! तू बालपन हो ; जो तुम्हारे लिये वेदोंका निर्णय असाया गया था, वह आज भूल गये हो ! हे तात ! सुझे परीक्षा दो । उनसे त्वभ सुनकर कुछ चिन्तासे घबडाये हुए वेदके जाननेवाले ब्रह्मा वेदोंकी परीक्षा विष्णुको वी। परीक्षामें ब्रह्माको कुछ अनुत्तीर्णता हुई। तब वेदका अनुशाग्रन अच्छी तरह समझाये गये ब्रह्मान क्षणमा श्रीनिवासको शुभ मार मूर्तियां पारौं वेदों मंस्रॉसे. अनायी । इस महाबुद्धिमानने उनका अलग-अलग नाम रखा ; पहला उत्सव श्रीनिवास दूसरा उग्र श्रीनिवास, तीसरा सर्वाधिक थीनिवास और पोथा शेखक श्रीनिवास* इन चारों सूर्तियो में मूलभूति श्रीनिवास हुए । स्वयं बेङ्कटाश्चल उक्त चार मूर्तियां जो आज भी श्री वेङ्कटवलमें विद्यमान है; उनमें से 708 हिंसाव निय निवेदन किया जाता है ।