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722 अष्टमे दिवसे चाद्यभवद्वाहनं हरेः । नानाविधैरलङ्कारैर्मण्डितः सुमहान् रथः ।। ५८ द्वितीयं रजनौ यानमभूदुच्चैःश्रवा हयः । नवमे दिवसे चाद्य यानभान्दोलिकाऽभवत् ।। ५९ ।। द्वितीयं मङ्गलगिरिर्यानभासीद्रमापतेः । हारिदैः पिङ्गलैश्रूणैरभिषिक्तस्य मङ्गलैः ।। ६० ।। समुद्युक्तस्यावभृथन्नानभाङ्गलिकोत्सवे । विष्णु के उस महोत्सव में ध्वजारोहण में पहले दिन प्रथम सवारी मनुष्यों की धान्दोलिका हुई शेष पर शयक्त करनेवाले शेषाचलनिवास की दूरी सवारी रात में शेष हुए, सदा शेष-श्यिा शाङ्गधा इस श्रीनिवास की दूसरे दिन प्रधम सवारी पुन: शेषनाग हुए, एवं राद्रि में दूसरी सवारी हंस हुँ अ’ ? तीक्षरे दिन प्रथम सवारी सिंह हुआ ; राप्तिमें दूरी वारी मोती का मंड: ; चौथे विन प्रथम सवारी क्षल्पवृक्ष और रात्रि में दूसरी सवारी सद राजा धुए । पांचवें दिन अमृतदेनेवाले तथा मोहिनी रूप धारण करने वाले भनेबान की प्रथम उवारी खान्दोलिका हुई; राति में वेद से ज्ञात होनेवाले भगवान की दूसरी सवारी साक्षात बेदमूर्ति गरड़ हुए । छठे दिन भवान की प्रथम सवारीी इंशुमान हुए ; रात्रि में दूसरो सवारी मंगलगिरि हुआ । श्लीके साथ इस : सन्तोत्सव के प्रेमी की रात्रि में तीसरी सवारी ऐरावत झार्थो हुना ! सातवें दिन प्रथम वारी सूर्य का भण्डल हुआ ; सर्व सुन्दर उद्घथःन में विहार करनेवाले और उत्सव के प्रेमी लक्ष्मीपति की दूसरी उदारी मंगलरिरि हुआ । रात्रिं को पूल भोग करनेवाली स्त्रियों से युक्त हर की तीसरी सवारी चन्द्रमण्डल हुझा ! आठवें दिन प्रथम सवारी अवेक प्रकार के अलङ्कारों से सजा हुवा व्हुत बड़| ९थ हुआ । रात्रि में दूसरी सवारी उच्चैश्रवा थोड़ा हुआ ; नवे दिन प्रथम छठवारी आन्दोलिका हुई । मांगलिव हरिद्रा के लेि चूर्ण से अभिषिक्त, धवधृत स्नान एवं मांगलिक उत्सव में तैय:र हुए सगवान लक्ष्मीपति को दूसरी बारी मंगलगिरि हुआ । स इत्थं मङ्गलैश्रुणैर्हरिद्वैरभिषेचितः ।। ६१ ।।