पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७४४

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

कम तोuडमान बोले-३ ब्राह्मण ! अःपके अ: का क्या कारण ६ सो कहिये। । उवाच। 726 'त्थिता प्रेतां प्राप्तः कालेन पृथिवीएले । तस्यास्थिनिचयं नीत्वा गङ्गाज्जनहेतवे । ८१ !! काशीं गच्छ:मि राजेन्द्र ! मन्दसा कृतनिश्चयः । पञ्चनैर्षश्च मे पुस्रो न शक्तो गन्तुमात्मना । तस्मात्त्रथा महाराज रक्षीयौ च तावुभौ !! ८३ ।। अशक्तोऽहं तया गन्तुं गर्भिण्या तु द्विजप्रिय । स्त्रीणां पत्युहे वाप्तो निश्तश्चोदितोऽन्यथा ।। ८४ ।। पित्रोः समीपे वासस्तु तदभावे स्वसुगृहे । अथवा मातुलुगृहे त्वथवा राजमन्दिरे ।। ८५ ।। स्त्रीणामिति जानामि तत्स्यितिम्। तस्मात्त्वं रक्ष राजेन्द्र सुतं भय च गर्भिणीम् ।। ८६ ।। कूर्मे बोला-हे पृथ्वीपति ! काल से मेरे पिता ने प्रेतत्व को प्राप्त किया है ; हे राजेन्द्र ! उन्हीं की अस्थियों को कर गंगास्नान को लिये निश्चयकर काशी को जाता हूँ ! दैवयोथ से मेरीी पतिग्रता स्त्री गणिी ही गयी है । मेरा पांन वर्ष का पुत्र स्वयं चल नहीं सकता है, हे महारांज ! इसलिए वे दोनों ज्ञापके रक्षा करने योग्य है : है भ्राह्मणों के प्रिय ! उस गर्भिणी को साथ ले जाने में असमर्थ हूँ । पति के भर में स्त्रियों १४ रना नियत (ठीक) है, नहीं तो पिता को पास, उसके अभाव में श्धुर के षर में, मातुल (मामा) के घर में अथवा राजा के मंदिर में । स्त्रियों के लिये ये छ: पिता है ; यही मैं उनके विषय में जानता हूँ ! हे राजेन्द्र ! इसलिए पुत्र (८६)