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57 सुन करके उठकर अत्यन्त आश्चर्यान्वित हो तीर्थ जाने से रुककर उसी वेंकटाचल की पोकर उन सत्रहों तीर्थों में क्रमश: एक के वाद दूसरे में स्नानकर तत्फल स्वरूप पूर्व कथित सब कुछ पाया, यह मैं ने पीछे सुना । (१४-१८) तिसः कोट्योऽर्धकोटी च तीर्थानि भुवनत्रये । तेषां प्रकृतिभूतानि तीर्थान्यस्मिन्हरे गिरौ ।। १९ ।। भूमिप्रदक्षिणे वाञ्छा यद्यस्ति मुनिसत्तमाः । सर्वतीर्थमयं सर्वपुण्यक्षेत्रमयं गिरिम् ।। २० ।। बेङ्कटाहं नरो गत्वा कुर्यात्तस्य प्रदक्षिणम् । भूमिप्रदक्षिणे पुण्यं यत्तत्पुण्यमवाशुयात् ।। २१ ।। वेङ्कटाचलशृङ्गाग्रे दृष्टमात्रे हलायुधः । तीर्थयात्रा फलं कृत्स्नं प्राप्तवानिति मे शृतम् ।। २२ ।। तीनों लोकों में साढ़े तीस करोड तीर्थ है उन वका प्रकृतिभूत तीर्थ इसी भगवत पर्वत पर है। यदि किसीको भूमि परिक्रमा करने की इच्छा हो तो वह सर्व तीर्थमय, सर्वपुण्य क्षेत्र मय इसी वेंकटाचल की प्रदक्षिणा कर भूमि प्रदक्षिणा का सम्पूर्ण पुण्य यहीं प्राप्तकर सकता हैं। श्री वेंकटाचल शिखर के दर्शन मान्न से ही इलायुध श्री बलदेव भगवान ने सम्पूर्ण तीर्थयात्रा का फल पालिया था, यह हमने सुना है । (१६-२२) पाण्डव तीर्थमाहात्म्यम् पाण्डवा । धमपुत्राद्याः कृष्णनाऽाकलष्टकमणा उपादष्टास्समागम्य वङ्कटाख्य नगात्तमम् ।। २३ ।। कस्मिंश्चित्पुण्यतीर्थेहिक्षेत्रपालाभिरक्षिते । कुर्वन्तः स्नानपानादीन् वसन्तश्चाब्दमात्रकम् ।। २४ ।। .. तदा कदाचिद्धमर्मोऽपि ददर्श स्वशमुत्तमम् । यस्मादस्मिन्महातीर्थे स्थितं वत्सरमात्रकम् ।। २५ ।। ।