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हाय ! यह बड़ा भारी क्षष्ट क्या है? यह राजा क्यों गिरा ? इसमें मेरा अपराध नहीं है। तथापि यह राजा यमके ऐसा भी दण्ड देने में समर्थ है । साक्षात मैं ही भगवानके नैवेद्वके लिए उस राजाके कहनेपर सौ घड़े उनको आज ही दूंगा ! इस प्रकार शूद्र कहे जानेपर राजा सचेत हुए और बोले-भीम नामक कृष्ण को प्रसन्न करनेवाला भगवानका अक्त कुलाछ कौन है ? साधुसम्मत सके चरणयुगलको सदा मैं प्रणाम करता हूँ । एवं वदति राजषौं भगवान् भक्तवत्सलः । आविर्बभूव पुरतः कुलालस्य महात्मनः ।। २१४ ।। (२२३) अविर्भूतं हरिं दृष्ट्वा कुलालो भक्तिसंयुतः । तुष्टाव हर्षपुष्टाङ्गः श्रीनिवासं निरामयम् ।। २१५ ।। राजर्षके इस प्रकार कहते ही भक्तवत्सल गवान महात्मा कुलालके सम्मुख प्रगट हुए। प्रागट हुए भगवानको देखर, हर्षसे पुष्ट अङ्गवाला होकर कुलाल भक्तिपूर्वक निर्दोष श्रीनिवासकी स्तुति करतै लगा । (२१५) स्वधुरस्तात्प्रादुर्भूतं भगवन्तै प्रति कुलालस्तुतिः त्वद्धाम वैकुण्ठपुरं महात्मंस्त्वद्वल्लभा सागरनन्दिनी च । त्वन्नाभिजातो हि पितामहोऽपि किं त्वां स्मरामीण ! कुलालजन्मा ।। २१६ ।। त्वत्पादसंभवा देवी साक्षाद्भागीरथी शुभा । तव पुत्रीं वदति तां चतुर्वेदमयो विधिः ।। २१७ ।। तवासनं सदा देवाः वदन्ति फणिनं विभो । सहस्रवदनं शेषं सुपर्ण वाहनं विदुः ।। २१८ ।। नक्षत्रमाला तव दन्तपङ्कितर्विद्यत्प्रकाशस्तव देहकान्तिः । महीधरा मेरुहिमाद्रिमुख्यास्त्वदस्थिभूताः पुरुषोत्तमाद्य । . तवाक्षिणी भानुविधू च विष्णो विराट्पदं त्वां शरणं प्रपद्ये ।। २१९ ।।