पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७६७

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हे महाइमन ! आपका धाम श्रीवैकुण्ठ है । वापकी प्रिया समुद्र की पुत्री लक्ष्मी है: और ब्रह्मा आपकी नाभीखे पैदा हुए है । हे स्वामी ! कुलाल के वंश में जन्म लेनेवाला मैं आपको क्या स्मरण करूं? आपके चरणसे साक्षात शुभ भागीरथी उत्पन्न हुई है। चारों वेद रूप ब्रह्मा उसको कायकी पुत्री कहते हैं । हे प्रभु ! देवतागण इजार मुखवाले शेष (सपं) की याएका सब समयका वासन ठौर गरुड़को बाहन फते हैं। हे सनातन ! हे पुरुषोत्तम ! नक्षतोंकि श्रेणियां आपकी दन्त श्रेणी है। विद्युतका प्रकाश झापछे देवकी चमक है। मेरु और हिमालय इत्यादि पर्वत आपके अस्थिभूत है। वापके नेत्र सूर्य यौर चन्द्रमा है । हे विष्णु विराट पद अपके शरणमें आया हूँ । (२१९) एवं स्तुवति शूद्रे तं प्रसन्ना कमलालया । जगद्धात्री जगादैवं पुरुषं परमेश्वरम् ।। २२० ।। क्वायं कुलालः पुरुषोत्तमास्य कथं बभूव त्वयि भक्तिरीदृक् । का जातिरस्य क्व च सद्गुणास्ते किमद्भुतं भोः करुणाम्बुराशे ।। २२१ ।। इत्युक्तस्तु जगद्धात्या गरुडं प्रत्यभाषत । अस शूद्रके इस प्रकार स्तुति करने पर जगदात्री श्रीलक्ष्मीजी प्रसन्न हुई और परमेश्वर पुरुषसे इस प्रकार बोले-है पुरुषोत्तम ! कहाँ तो यह कुलाल ! और इग्की भक्ति आपमें इस प्रकार-यह कैसे हुई ? है करुणासागर ! इसकी जाति क्या है? इसके सद्गुण कहाँ है? यद्द आश्चर्दयुक्त कौन है? गद्धात्री लक्ष्मीजीके इस प्रकार पूछे जानेपर भगवानने गरुड़से कहाँ । (२१) श्रीभगवानुवाच 'तमानयातिवेगेन मत्समीपं कुलालजम्' । थीनिवास बोले-उस कुलाल फुलको मेरे पास हुत शीघ्र ले आो । (२२) इत्युक्तो गरुडो बेग्दनिनाश् च शूद्रजम् ।। २२२ ।।