पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७७७

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ध्यान है, और न दूसरी समाधि है ; जिसको देखर सद इन्द्रियों का सोहकर दूसरी मुक्ति नहीं है। जिसको देखकर दूसरा नित्य (अक्षा रहनेवाला) नहीं है । जिसको देखकर फालझा ली भध नहीं हैं । जियको भलिसे देख चेपर सारे संसार में दूसरे विष्णु नहीं है । जिसकी देखधर ही तीनों प्रकार का कृत्य कर चुका, इसमें संशथ नहीं है । झिस लक्ष्मीपतिको देखकर दूसरे कोई काम देनेवाला नहीं है । जिस सच्चिदानन्दकी मूर्तिको देखकर दूसरे ब्रह्म नहीं है । जिसको देखकर सद सिद्धियोंके देनेवाले दूसरे अष्ट?ङ्गयोग नहीं है। जिस श्री बेङ्ध्टेशको देखकर दूर सदैव्यापी पूर्ण नहीं है।* (२४) न वेदान्तात्परं शास्त्रं न देवो वेङ्कटॅश्वरात् । न वैकुण्ठात्परं धाम न गिरिर्वेङ्कटात्परः ।। २५ ।। सत्यं सत्यं पुनः सत्यं न देवो वेङ्कटेश्वरात् । ब्रह्माण्डे नास्ति यत्किचिन्न भूतं न भविष्यति ।। २६ ।। वेङ्कटैशसमो देवो नैति वेदान्तनिर्णयः । तद्रहस्थसुसंवादं स्वचित्तस्चदुमेशयोः ।। २७ ।। श्रुणुध्वमवधानेन सिद्धान्तं मुनिपुङ्गधाः । वेदान्लसः दूसरा शास्त्र नहीं है, श्रो बँङकटेशवा दूसरा देव नहीं है । वैकुण्ठस दूसरा धाभ नहीं हैं । यह उत्थ है. बार-बार सत्थ हैं कि ब्रह्माण्डमें श्री वेङकटेश्वर जैसा दूसरा देव नहीं है । जो कुछ भी हो, न कभी था, न होगा । श्री वेङ्कटेशके समान देवता हीं है, यह वेदान्वका निर्णय है । हे श्रेष्ठ मुनिगण! उनके रस्य सम्वन्धी शिवपार्वतीके हृदयमें रहनेव ले संवाद और सिद्धान्तको मन श्रीसूत उवाच कैलासेऽनन्तशिखरे पर्वते निर्मलोज्जवले ।। २८ ।। -- .

  • इस पाराका अर्थ मूलके अनुसार रखनेसे स्पष्ट न ही सका है । पाठवा

इसका अर्थ “ जिसको देख लेने के बाद कोई स्थान देखदे योग्य शेष रह जाता इत्यादि जैसा समझे ।