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60 नवमोऽध्यायः श्रीवेंकटाद्रि प्रति श्रीरामागमनम् मुनय उचु -- वेङ्कटाद्रस्तु माहात्म्य जनकणरसायनम् । शृण्वतां नास्ति तृप्तिस्तु मुनीनां नो बुधोत्तम ।। १ ।। भूयः कथय वृत्तान्तं शृतं किञ्चित्वया पुरा । इत्युक्तः प्राह सूतोऽपि धृतं च मुनिपुङ्गवान् ।। २ ।। रावणवध हित राम को, लखन संग असनान । राम अञ्जना कथन पुनि, मिलन राम-हनुमान ।। १ ।। राम ससैन्य गिरीश पर, सुख पूर्वक विश्राम । निलभा उद्धार यह, दर्शन प्रभु श्रीराम ।। २ ।। सैन्य उमंग अनेक विधि, बल अनुमान अनन्त । उस नव में अध्याय में लिखा सूत श्रीमन्त ।। ३ ।। वेंकटाद्रि पर श्रीरामागमन मुनियों ने कहा-हे मुनियों में श्रेष्ठ ज्ञानी सूतजी ! भनुष्यों के कर्णरसायन वकटाद्रि का माहात्म्य आपसे सुनकर हम लोगों को तृप्ति नहीं हुई, अत एव कृपया कुछ और आप कहें जो पहले आपने सुना हो । यह सुनकर श्री सूतजी ने उन मुनिपुंगवों से स्वयं जो कुछ सुना था वह कहा । सूत उवाच : पुत्रो दशरथस्यासीद्रामो राजीवलोचनः । स सर्वलक्षणोपेतः सर्वशास्त्रविशारदः ।। ३ ।। (१-२)