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763 अन्नदान, महा पूजा और उत्ऋक्षका उत्तम वैभव एवं स्वामिको प्रसन्न करनेवाला कैकय्र्य अमन्त फलका देनेवाला हौता है । स्वर्णदान, अन्नदान एवं पितृ श्राद्धादि जो कुछ भी शर्म यहांर किये जाते है के सब अनन्तफलको देनेवाले कहे गथे हैं । ज्ञानियों और अज्ञानिकोंको समान ही भक्तिपूर्वक कालक्षेप करीको उत्साहित करता हूँ ; कर्मसे यहां इन्धन नहीं होता है; प्राचीन क्षेत्रों यह मुक्तिका स्थान समझा जाता है। श्रीपर्वतके मस्तकपर सायुज्य-मुक्ति या आन्दकी प्राप्ति होती है और मुक्ति क्षेत्रों अपने आनन्दका ही अनुभव होता है। उस बिष्णु वेङ्कटेश उत्तम आनन्दके इसी पदमें रहना होता है, यहांपर श्रीवेङ्कटेश्वरके मण्डल में बस्तुके स्वभावकी विचित्रतासे ही यह परम आनन्दका कारण है । (५१) मुक्तानो योगिनी मध्ये कश्चित्रमयोगिराट् ।! ५१ ।। एतत्परं रहस्यं तु लोके जानाति साधरः । सर्ववेदान्तसिद्धान्तसारस्थानुभवं प्रिये ।। ५२ ।। ब्रह्मानन्दपदप्राप्तिकारणत्वान्मम प्रियम् । नैतद्रहस्यभाख्यानं वक्तव्यं यस्य कस्य चित् ।। ५३ ।। भक्तियुक्ताय शान्ताय वक्तव्यं वेङ्कटेश्वरे । सच्चिदानन्दसन्मूर्तेः कल्याणगुणवारिधेः ।। ५४ ।। हे प्रिया ! संसार में मुक्त थोगियोंके माध्यमें कोई परम योगी ही सब वेदान्तके सिद्धान्तोंई साका अनुवरूप इस उत्तम रहस्यको जानते हैं, दूसरा नहीं । ब्रह्मानन्द पद देनेके कारण इड मेरे प्रिय रहस्याख्यानको जिक्ष किसीसे नहीं कहना चाहिये, श्रीवेङ्ध्टेशमें भक्ति रखनेवाले शान्त पुरुषों ही कहना चाहिये । (५४) बेङ्कटेशहरेध्यनिवैभवं श्रृणु पार्वति : अनन्तकल्पसञ्जातपापरराशिविनाशनम् । । ५५ ।। वाङ्मनः श्रवणानन्दमकरन्दफलप्रदम् । न शक्यते मया वक्तुं तद्धामध्यान्ज फलम् । तद्धामस्वामिनश्चित्रमवाङ्मानसगोचरम् ।। ५७ ।।