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73 शोभायुक्त, नाभीक्षः गम्शौरसे उज्जवल, ऊपरकी रोमावलीकी चमकसे जीते हुए इन्द्रनीलमणिकी कान्तिदःळे मोतियोंकी मान्नासे शोभित छातीमें रहती हुई श्रीलक्ष्मीजीके प्रकाश की किरणवाले, तपते हुए ज्योतिर्मय ब्रह्मसूत्रोंसे वण्ठमें लगी हुई कण्ठीमालाके रत्नशी प्रजासे, दकने शोभती हुई दीपावली जसे अनेकों मणिपोंसे, सुन्दर रत्नोंले अंगद (वाजू). यूर (दाहुके आभूषण) कंकण और अंगूठीसे, इन्द्रनील नणिके घ्रमाने सुन्दर दाराभरणोसे, शंख, चक्र, अभश् इत्यादिकी शोभासे शोति सुन्दर हाथोंसे, सुन्दर चिबुक (ठुड्डी) के साथ लहरदार औौष्टसे श्रजी पंक्ति सी जैसी शोझती हुई दातोंको पक्तियोंसे, लजाये हुए चन्द्रमाकी ज्योति तया पुणे चन्द्रढे ख्दृश मुखकमलसे, रम्य दासातक समोन्नत (नीचे ऊँचे करनेवाले) हास्यसे, सौन्दर्यसिन्धुकी सीमा जैसे एवं मन्न के अकारवाले सूर्यको जीत लिये हुए कपोलोंके स्वर्ण कुण्ठलोंसे, दयारूपी अमृतके समुद्र में स्वान् किये लक्ष्मीके दोनों नेत्रोंके उत्सवसे (अर्थात कटाक्षसे), मदिभय धनुषॐी ताह सुन्दर भौंहोंसे शोभित लॉटसे, नील केशों के बीच में रखे हुए मोतियोंसे विराजमान सुन्दर कान, चैत एवं ललाटमें लग्न देशपाससे, भकते हुए किरीटके सौन्दर्यसे करौड़ों भ्रामदेवोंकी शोभाको जीते हुए जाज्वल्यमान स्वर्णके दीचमें इखे हुए, अनेकों प्रकारके विषिन्न किरणवाले तथा तीन तेजसे भी अधिक चमकृवाले लोकोत्तर रत्नोंसे, एवं स्कन्दके दिये हुए किरीटसे अलंकृत-उससे ही छोभित, अमृतकी धाराको बरसानेवाले शोभते हुए दथाके समुद्र, सद अंगोंके भूषणोंसे शादै संसारको मोहित करनेवाले, रूपकी सुन्दरता सब अंगोंके भूषण इत्याश्मेिं विशेष करके प्रिय, चरणसे लेकर केशपर्यन्त अत्यन्त सुन्दर शोधले हुए जैसे श्रेष्ठ एवं बहुभूल्य मणियोंसे शोभित, नेपथ्यजाल, बिजली के जैसे चमझते हुए ट्राम्बूनद इत्यादिसे जड़े हुए निर्मल और सुन्दर प्रशःशोंके सोपानसे अधिक रम्य, तारागण, चन्द्र एवं रविमंडरूसे शोभित चमकती हुई विजलीरूप गंगा एवं ग्रहराशियुक्तः स्वणचल रूप उदयावलके शृङ्ग में रहते हुए श्यामघनछे समूहकी चमकके जैसे सुन्दर, अत्यन्त सुन्दर और मोहक अंगवाले, लक्ष्मी और धरणी देवोके स्वामी, कमलदलके जैसे नेतवाले, प्राणके प्यारे, धरूणाके समुद्र, ब्रह्मा एवं शिक्षसे वन्दित तथा अमृत और वरको देनेवाले श्रीवेङ्कटेशका भजन करता हूँ । (१३७) सततं हृदयाम्भोजमध्ये श्रीवेङ्कटेशश्वरम् । प्रणवार्थस्वरूपं तं त्रिमण्डलसुसंस्थितम् ।। १२७ ।। चन्द्रसूर्याग्निबिम्बानो प्रकाशकरमच्छुद्धम् । ध्यानस्वरूपं देवेशं सर्वदानन्ददं पृभ ।। १२८ ।।