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वसन्:मलानन्दमात्मारामं भुदान्वितम् ।। १४१ ।। समस्तदेवतावन्द्य सार्वभौभशियः:मणिम् । सर्वदेवनियन्तारं सर्वदेवेश्वरेश्वरम् ।। १४३ !। चराचरात्मकं विश्वं रक्षिलारं कृपानिधिम् । किरीटाङ्गदसंराङ्गद्दीर्घबाहुमरिन्दमम् ।। १४४ ।। सर्वाङ्गलक्षणानन्दं दर्शयन्तं पदाम्बुजम् सत्यं विशुद्धविज्ञानं वनप्रज्ञापदं हरिम् ।। १४५ ।। उपास्महे वयं नित्यं हृदयेऽष्टदलाम्बुजे ।। १४६ ।। और प्रणवके अर्ध स्वरूप, तौदों मण्डलोंमें स्थित, चन्द्र, सूर्य इत्यादि बिम्बोंको प्रकाश करदेवाले, अच्यु, र्वक्षा मेरे ४ानन्दको देनेवाले ध्यानस्वरूप देवेश, पादसे लेकर मस्तक.पय्र्यन्तै श्रीमानों भूगों से भूति, अश्यन्त सुगन्धसे सब दिशाओंको सुगन्क्षित किये हुए एवं मिश्रित चन्द, अगर, छापूर, कस्तूरी (भृगमद) , कुंकुभ इत्यादिका दिव्य तथा सोह लेथ येि हुए, ने क्षणोंकेि सुगन्धियुक्त शोति , दिव्थ उत्पवसे, दिव्य रक्षके प्रव:हयुक्त मृतके जैसे पायससे, दही, घो, स्बर्गीय सूपान्न, भधु एवं शर्कराले, स्वर्गीय गंधवाले नैबेद्यसे, षट् रसयुक्त अमृतके जैसे पाय है, कल्याणथुक्त विभवने षोड़श प्रकाके उपचारोंसे, भुक्ताके चूर्ण मिले हुए अलौकिक गन्धवाले ताम्बूलले कपूरकी दौड़ी दिथ्य योगसेि, धूप, दीप, महादीप उत्तभ नीराजन (आरती) से, क्षश् अङ्खोंके आभूषणकी अद्धिकता प्रकाशमान श्रीलक्ष्मीजीके सा कुमारस्वाश्री द्वारा सदा भाँति एवं निर्मलचित्तसे पूजित, सुन्दर चामद, छत्र, व्यजन (पंडा), इतत्तन ६पंथ (2ाइना) गीत, बाजा, नृत्य (नाच), मृदंग, पटव्ह, नगाड़ा, वीणा, वेणु, सुन्दर ताल इत्यादिसे युक्त गोमुखके बाजाओं के समूह, तूर्य, भेरी, युग्दर शंख, देवताओं के सुन्दर शब्दोंसे, सिद्ध, किन्नर, गन्धर्व, अप्सरा, किम्पुरुष, तुम्बुरु, हा द्वा , नारद इत्यादि,