पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७९४

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

776 देवर्षि, गरुड़, सर्प, यक्ष, विनोदवाले विद्याक्षरके संगीतके प्रधुर आलाप एवं त्झन्यकी स्तुतिसे प्रसन्न किये गये, शुद्ध सत्वगुणके आकारवाले, स्वामी सरोवरके तटर लक्ष्मीके साथ र मण करते हुए, आनन्दित मन्वाले, निर्मल अनन्दमें रहनेवाले, आत्माराम, आनन्दयुक्त, सब देवताओंसे नमस्कृत, सार्वभौम राजाओंकी शिक्षाफी मणि, सृष्टिके समय सृष्टि उरनेवाले, स्थिति समय पालन करनेवाले, प्रलयके समय नाश करनेवाले, नहीं नाश होनेवाले , अव्यय, श्रीवेङ्कटेश्वर, सव देवज्ञाठोंके नियन्ता, सब देवताओं के स्वामीके स्वामी, चर और अचरमें व्याप्त, संसारकी रक्षा करनेवाले, वाले समुद्र, किरीट एवं अंद (वाजू) से शामित लम्बी बाहुवाले शत्रुझोंको दमन करखेवाले, सब अंगोंके लक्षणोंसे श्रानन्दरूप चरणक्षमलोंको दिलाते हुए, सत्य विशुद्ध विज्ञान उत्तम बुद्धिको देनेवाले, करुणाकी मूर्ति तथा सब जीवोंपर उत्तम दया करनेवाले रिकी इमलोग अपने हृदयके अध्टवल कमल में उपासना करते हुए । (१४६) अष्टाक्षरपदानन्दं । रमेशं कर्णिकोपरि एवं ध्येयं पुरस्कृत्य पश्चाद्वयानमिदं वदेत् ।। १४७ । यन्नामश्रुतिसारसान्द्रजलधिस्थाने लसत्कौस्तुभं स्वाज्ञानान्धतमिलदुःखहरणं मत्पुत्रसञ्जीवनम् । विश्वाभीष्टवरप्रदानफलदं भोगीन्द्रसद्भूषणं सर्वेश्वर्यनिदानमात्मवरदं श्रीवेङ्कटेश भजे ।। १४८ ।। आठ अक्षरके पदार्घ, थानन्दरूप, लक्ष्मीके पतिको हृदय कर्णिकाके ऊपर सत्कारपूर्वक धारण करके, दीछे यह ध्दानकर कि जिनका नाम वेदोंके सार (वेदान्त) के गम्भीर समुद्रमें शोभता है, उन्हीं चमकती हुई कौस्तुभ मणिवाले अपने अज्ञामरुपी अन्धकारके दुःखोंको नाश करदेवाले, मेरे पुतटे संजीवन, संसारके अभीष्टप्रदान रूपी पलको देनेवाले, सपोटे सुन्दर आभूषणोंसे युक्त, सब ऐश्वर्योके निदान एवं आत्मो वैनेवाले एवं बादगाको वर देनेवाले श्रीवेङ्कटेश के भजन करता हूँ। सन्तोषो मम वेङ्कटेशनिकटे श्रीस्वर्णमुख्यास्तटे स्वावासो भवतीति दिव्यसरित: स्वर्गापवर्गप्रदे । कैलासे विधिकुम्भसम्भवनुते श्रीकालहस्तिस्थिले कैवल्ये वसतामनन्तमहिमा योगीश्वरो दुर्लभः ।। १४९ ।।