पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/७९८

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

780 देनेवाला ध्यान करके में तुम्हारे लाय ऋन्न भोजन करता हूँ! हम लोगोंके ध्यान करने योग्य श्रीवेङ्कटेश्डे वराबर इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमें कोई वस्तु दहीं है । नहीं है-यह सत्य है। (१६७) एतं रहस्यमध्यायं श्रीवेङ्कटपतेः प्रियम् । जपित्वा भुज्यते येन प्रत्यहं परमात्मनः ।। १६८ ।। नृत्यन्ति पितरः सर्वे सन्तुष्टास्तस्य वंशजाः । देवाश्च ऋषयस्तृप्ताः प्रथान्ति परमं पदम् ।। १६९ ।। परमात्मा श्रीवेङ्कटेशके प्रिय इव रहत्यकै अध्यायको प्रति दिन जो जवझर भोजन करता है, उसले वंशके सड पितर संतुष्ट हो आनन्दसे नाचते हैं । देवता और ऋषि तृप्त हो जाते हैं और अन्तमें वह परमपद पाता है । [१६९) आश्चयमतुल श्रृत्वा परमानन्दानवृताः । आनन्दाश्रुपरिक्लिन्ना रोमाञ्चितवपुर्धराः ।। १७० । विस्मिताः शौनकाद्यास्तु भक्त्यानन्दं पुनर्गताः । पुनध्यानं समासाद्य पुनर्गद्वत्या गिरा ।। १७१ ।। ऊचुः शनैर्महात्मानं सूतं पौराणिकोत्तमम् । व्यासशिष्यं महाभागं शास्त्रसिद्धान्तकोविदम् ।। १७२ ।। इस अतुल आश्वर्यको सुन परम जानन्वित हो, आनन्द के आंसूसे भोगे हुए, पुलकित रोमयुक्त शरीरवाले तथा आश्चर्य युक्त शौनक इत्यादिने पुनः भक्तिसे आनन्दको पाये हुए पुनः ध्यान करके गद्गद् वाणिसे उत्तम पौराणिक, व्यासकै शिष्य, महाभाग तथा शास्त्रको ष्टिद्धान्तको जाने वाले सूतसे कहr । (१७२) अद्य शृत श्रुत मुख्यमचानन्द गता वयम् । अचैव जन्म सफलं साक्षात्संसारमोचकम् ।। १७३ ।। त्वत्प्रसादादुमिष्यामो वयं शेषाचलं प्रति । ऋषि वोलो-आज ही हमने मुख्य बात सुनी है । आज छान्दको प्राप्त हुए है ! आज ही हमारे जन्म सफल हूए हैं। आपकी कृपासे हमलोग साक्षात संसारको छड़ानेवाले शेषाचलको जायेंगे । (१७५)