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784 यः श्रुणोति सदा भक्त्या रहस्यानुभवोत्तमम् । यः स्थापयति लोकेऽस्मिन् सिद्धान्तमिममद्भुतम् ।। १९६ ।। विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान् कन्यार्थी लभते वधूम् ! १९७ ।। वश्यार्थी वश्यमाप्नोति जयार्थी जयमाप्नुयात् । मोक्षार्थी मोक्षमाप्नोति ज्ञानार्थी ज्ञानमाप्नुयात् ।। १९८ ।। याँ यां कामयते सिद्धिं तां तामाप्नोति स द्विजः वेङ्कटेशे पर प्रीतिं लभते सोऽतिभक्तिमान् ।। १९ ।। सकलोपनिषत्सिद्धान्त श्रीबेङ्कटेश्वरहस्यानुभवी नामाशीतितमोऽध्यायोऽल प्रथमोऽध्यायः ।। १५ ।। साक्षात संसारकै छुडानेवाले सब वेदान्तों के सिद्धान्त रूप इस पवित्र अध्यायको जो प्रतिदिन सुनाता है और जो सदा श्रीवेङ्कटेश्वरके भक्त ब्राह्मणोंसे योगियोंसे के ही अनुभव करने योग्य रहस्यको भक्तिपूर्वक सुनता है, और जो इस अद्भुत सिद्धान्तफा संसारमें स्थापन करता है. वह विद्यार्थी विद्या, धनार्थी धन, पुत्रार्थी पुल, कन्यार्थी कन्था, वंश चाहनेवाला वंश, जय चाहनेवाला जय, मोक्षार्थी (मोक्ष चाहनेवाले) मोक्ष तथा ज्ञान चाहनेवाले ज्ञाद श्रीवेङ्कटेशकी उत्तम भक्ति पाता है । हे ब्राह्मणो ! वह जो जो सिद्धि चाहता है सो सो पाता है; और वह भी पाता है । (१९९) इति श्रीभविष्योत्तर पुराण श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्यमें शिवपार्वती सम्वामें सब उपनिषदोंका सार श्रीवेङ्कटेश रहस्य नामक कल्याणाद्भुतगईत्राय कामितार्थप्रदायिने । श्रीमद्वेङ्कटनाथाय श्रीनिवासाय मङ्गलम् ।। 1। श्रीवेङ्कटेशार्पणमस्तु ।