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68 दशमोऽध्यायः वैकुण्ठाख्यगुहाप्रविष्टवानरवृत्तान्त ीसूत उवाच स्वामिपुष्करिणी यत्र तत ईशान्यभागतः । गजो गवाक्षो गवयः शरभो गन्धमादनः ।। १ ।। मैन्दश्च द्विविदश्चैव सुषेणश्च महामतिः । काचिद्गुहां तमोरुद्धां प्रविष्टास्तत्र वानराः ।। २ : उन्निद्रनेत्राः सर्वेऽपि सिंहतुल्यपराक्रमाः । जग्मुस्ते तमसाऽऽविष्टां सुदरं तां गुहां तदा ।। ३ । कपि वैकुण्ठ प्रहा गमन्, दर्शन पुरि सुर यान । दिव्य चतुर्भुज पुरुष भय, फिरना बाहर मान ।। १ ।। पुनि धिन होना दृश्य सब, विस्मित कपि अनुमान । रावण-वध रामहिं फिरन, राज्य लाभ भगवान ।। २ ।। गुण वैकुण्ठ गुहा कथन, तेहि मायापति वास । इस दशवे अध्याय में, वर्णित ईश विलास ।। ३ ।। ठ नाम गुहा में प्रविष्ट वानरों की कथा श्री सूतजी बीले -स्वामिपुष्करिणी के ईशान भाग में किसी अन्धकार से व्याप्त गुहा में गज, गवाक्ष, गवय, शरभ; गन्धमादन, मैन्द, द्विविद तथा सुषेण आदि महामति वानर घुस गये। सिंहृतुल्य पराक्रमी सभी आँखें खोले हुए तमोवृत्त गुहा में बहुत दूर तक चले गये। (१-३) ददृशेऽत्र महाज्योतिः सूर्यकोटिरिवोदिता ज्योतिर्गणानां तडितां मिलितानामिवाबभौ ।। ४ ।। ।