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69 तत्र काचित्पुरी रम्या तप्तहाटकनिर्मिता । कपाट तोरणवती रभ्योद्यानशतैर्युता ।। ५ ।। स्फटिकोपल वच्छुद्धजलनद्या समावृता । रत्नमाणिक्यवैडूर्यमुक्तानिर्मितगोपुरा ।। ६ ।। अनेकमण्डपैर्युक्तो प्रासादशतसङकुला । महावीथीशतोपेता रथमातङ्गसंयुता ।। ७ ।। वरनारीगणोपेता सर्वमङ्गलशोभिता । शङ्खचक्रधरास्तत्र सर्वे चैव चतुर्भुजाः ।। ८ ।। सशुक्लमाल्यवसनाः सर्वाभरणभूषिताः । दिव्यचन्दनलिप्ताङ्गाः परमानन्दपूरिताः ।। ९ ।। वहाँ उन्होंने करोड़ों सूर्य के समान ज्योतिसंपन्न कोई अद्भत प्रकाश यातेज ो उगते देखा । मानो सम्पूर्ण ज्योतिमण्डल एवं विद्युतगण एकमय हो गये हो । उन्होंने वहाँ एक परम रम्य तप्त सुवर्ण से बनी हुई कोई पुरी देखी, जो किवाड़ तोरण, रम्योद्यान स्फटिक शिला के समान उज्ज्वल जलवाला नदी से समावृत तथा रत्न माणिक्य वैडूर्यमणि, मुक्तादि से निर्मित गोपुरादि से युक्त तथा अनेक मण्डपों से सुसज्जित सहस्रों विशाल-विशाल प्रासाद से समावृत एवं अनेक महा गलियों से सुसज्जित थी। वह पुरी रथ, मतवाले हाथियों, श्रेष्ठ नारीगणों, तथा सर्व मंगलों से सुशोभित थी। वहाँ के सभी निवासी शंख-चक्रधारी और चतुर्भुज थे । वे श्वेतमाल और श्वेत वस्त्र धारण किये हुए थे और सर्वाभरण भूषिता सुगन्धित चन्दन लगाये, परमानंद पूरित थे । (४-९) तन्मध्ये सुमहद्दिव्यं विमानं सूर्यसन्निभम् । अत्युन्नतमहामेरुश्रुङ्गतुल्यं मनोहरम् ।। १० ।। बहुप्रकाशसम्पन्न मणिमण्डपसंयुतम् । भेरीमृदङ्गपणवमर्दलध्वनिशोभितम् ।। ११ ।।