पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/८८

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

70 नृत्तवादित्रसम्पन्न किन्नरस्वनसंयुतम् ददृशुस्तत्र पुरुषं पूर्णचन्द्रनिभाननम् ।। १२ चतुबाहुमुदाराङ्ग, श चक्रधरं परम् । पीताम्बरधरं सौम्यमासीनं काञ्चनासने ।। १३ ।। फणामणि महाकान्ति विराजित किरीटिनम् भोगिभोगे समासीनं सर्वाभरणभूषितम् ।। १४ ।। आसनोपरि विन्यस्तवामेतरकराम्बुजम् । प्रसार्य दक्षिणं पादमुद्धृते वामजानुनि ।। १५ ।। प्रसार्य वामहस्ताळज श्रीभूमिभ्यां निषेवितम् । सेवितं नीलया देव्या वैजयन्त्या.विराजितम् ।। १६ ।। श्रीवत्सकौस्तुभोरस्कं वनमालाविभूषितम् कृपारसतरङ्गौघपूर्णनेत्राभ्बुजद्वयम् ।। १७ ।। शशिप्रभासमच्छत्रं चाभरव्यजने शुभे । हस्ताभ्यां धारयन्तीभिर्नारीभिः सेवितं मुदा ।। १८ ।। दृष्ट्वा ते वानराः सर्वे विस्मिताः शुभलोचनाः । उसके बीच महादिव्य सूर्य के समान प्रकाशमान अत्युन्नत बड़े ऊँचे पर्वत के समान ऊँचा, अत्यन्त मनोहर, अनन्त प्रकाशोज्ज्वल, एक मणिनिर्मित मण्डप से सुशोभित और साथ ही साथ नृत्य, गान्, किन्नरालाप से गुंजायमान एक विमान था, जिसमें पूर्णचन्द्र के समान परम मनोहर मुखवाले, चतुर्भुज, शंखचक्रधारी, पीताम्बर पहने, सौने के सुन्दर आसन पर शान्ति भाव से आसीन, फणा-मणि-जटित किरीट मुकुटधारी शेषनाग के फणपर बैठे, सर्वाभरणं भूषित एवं दाहिना हाथ आसन पर रखे हुए, दाहिना पैर फैलाये, वायें जानु पर बायाँ हाथ खोले हुए, श्रीभूमि एवं नीला देवी से सेवित, वैजयन्ती की माला पहने, श्रीवत्स कौस्तुभमणि छाती पर धारण किये, धनमाला, विभूषित, पुरुषोत्तम, कृपारसपूर्ण पद्मा के समान नेत्रबाले, चन्द्रमा की