पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/९०

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ततः प्रभाते विरते रामो राजीवलोचनः ।। २५ ।। लक्ष्मणन सह भ्रात्रा वानरन्द्रण धामता । सह सैन्यैर्महातेजाः प्रतस्थेऽरिजिगीषया ।। २६ ।। जित्वा च रावणं युद्ध प्राप्य सीतां महाबलः । अयोध्यां पुनरभ्येत्य भ्रातृभिः सहितोऽनध: ।। २७ ।। प्राप राज्यं स्वयं रामः स्वामितीर्थस्य । वभवात् इति श्रुतं मया पूर्वमबुवं भवतामहम् ।। २८ ।। पश्चात प्रभात होने पर राजीव लोचन, महा तेजस्वी श्री रामचन्द्र , लक्ष्मण तथा महामति वानरेन्द्र और सेना के साथ शतृ जय की इच्छा से प्रस्थान किए और युद्ध में रावण को जीतकर, सीता देवी को पा अयोध्यापुरी लौट आये एवं पुण्यात्मा भाइयों से पुनः मिले । वे इसी स्वामि-तीर्थ के प्रभाव से अपना पहला राज्य पाये । यही हमने पहले सुना था ओर उसे आप लोगों को सुनाया । (२५-२८) वैकुण्ठाद्रौ गुहाप्रभाववर्णनम् मुनय ऊचु वैकुण्ठाद्रौ गुहा दृष्टा काचिद्वानरसत्तमैः । इत्युक्तं भवता सूत ! वेदवेदाङ्गपारग । गुहा ब्रह्मच्छोतुं कौतूहलं हि नः ।। २९ ।। का : वद ना वैकुण्ठ गुहा प्रभाव वर्णन मुनियों ने कहा-हे वेदवेदाङ्ग पारंगत सूतजी! वैकुण्ठाचल में वानरश्रेष्टों ने कोई गुहा देखी ऐसा आपने कहा था, अत एव महामुनि ! बह कौन-सी गुहा है, आप कृपया बतलाइये। हम लोगों को बड़ी सुनने की इच्छा हैं। (२९) श्रूयतामभिधास्यामि देवमाया मया श्रुता । वैकुण्ठाख्या गुहा सा तु दुज्ञेया मुनियोगिभिः ।। ३० । ।