पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/९३

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मुनय ऊचुः 75 रावणादिपीडितदेवर्षीणां क्षीरार्णवब्रह्मलोकादिगमनम् । एादशोऽध्यायः विश्वविश्रत विश्वार्थविबोधनविचक्षण ! । वक्तुमर्हसि तत्सूत ! यत्पृच्छामो वयं पुनः ।। १ ।। वेङ्कटाद्राविदानीं तु सर्वप्रत्यक्षगोचरः । आस्ते ह्यञ्जनशैलाभः सर्वाभीष्टफलप्रदः ।। २ ।। कस्य वा पुण्यशीलस्य रुपमेतत् प्रदर्शितम् । वक्तव्यं तदशेषेण शृण्वतां नो महामुने' । इत्युक्तो मुनिभिस्तैस्तु सूतः प्राह मुनीन्प्रति ।। ३ ।। दैत्य-वंश से दुःखित हो, ऋषि कश्यप जाबालि । लक्ष्मीपति गृहगमन हु, िवनय करन वनमालि ।। १ ।। प्रभुचर दरशन कथन फल, श्रीनिवास महि वास । तथा गमन नारद मिलन, कथन दैत्य दुख रास ।। २ ।। पुनि सब कह विधिपुर-गमन, विनय करन विधि देख । वर्णन निज अभिप्राय यह, विधि को प्रभु यल देख ।। ३ ।। देवर्षियों का ब्रह्मलोक गमन मुनियों ने कहा-हे विश्व विख्यात संसार के सब रहस्यों को बताने में विलक्षण महामुनि श्री सूतजी ! फिर जो कुछ हम लोग पूछते हैं, कृपया उसे कहिये । वेंकटाद्रि पर इस समय सब लोगों के प्रत्यक्ष गोचर, सर्वाभीष्ट फलप्रद अञ्जन