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76 पर्वत के समान महापुरुष विराजमान है। उन्होंने यह स्वरूप किस पुण्यशील महानुभाव को दिखलाया था। यह आप विस्तारपूर्वक कहिये। (१-३) शृणुध्वं मुनयो यूयं वेङ्कटेशकथां पराम् । व्यासेन मुनिना प्रोक्तां मह्य पूर्व स्वयंभुवः ।। ४ ।। प्रदर्शितमिदं रूपमिति तत्कथयाम्यहम् । वृत्तान्तमादतः कृत्वा शृण्वन्तु मुनिसत्तमाः ।। ५ ।। इस प्रकार मुनियों के प्रश्न करने पर श्री सूतजी बोले-मैं श्री व्यासजी से कही हुई परमाद्भुत, परम पुण्यप्रद श्री वेंकटेशजी की कथा कहता हूँ । पहले श्री वेंकटेशजी ने यह परम विचित्र रूप ब्रह्माजी को दिखलाया था, वही कया में कहता हूँ । हे मुनिसत्तमा! आप लोग आदि से ही सारी कथा सुनिये । (४-५) पुरा कदाचिज्जाबालिः काश्यपो गौतमस्तथा । अगस्त्यो वामदेवश्च शतानन्दो मुनिस्तथा ।। ६ ।। योगिनः सनकाद्याश्च वासवाद्या दिवौकसः । हिरण्यकशिपोर्वशसम्भवैश्च दुरात्मभिः ।। ७ ।। दैत्यैश्च पीडिताः केचिद्विष्णवे तन्निवेदितुम् । निर्जग्मुस्तेऽथ सम्भूय विचेतुं विष्णुमव्ययम् ।। ८ ।। पहले किसी समय में जाबालि, कश्यप, गौतम अगस्त्य , वामदेव, शतानन्द आदि मुनि तथा सनकादि योगी, इन्द्रादि देवता, हिरण्यकशिपु वंशज दुरात्मा दैत्यों से अत्यन्त पीडित होकर विष्णु भगवान के निकट अपने कष्ट को निवेदन करने के लिए निकले । (६-८) क्षीराब्धेरुत्तरं तीरं गत्वा देवं जनार्दनम् । तुष्टुवुर्विविधैस्तोत्रैरगस्त्याद्याः सुराश्च ते ।। ९ ।। अगस्त्यादि मुनिगण तथा सब देवतागण इकट्ठे होकर, परम अव्यय विष्णुजी को खोजने के लिए क्षीर सागर के उत्तरी तीर पर जाकर श्री जनार्दन भगवान को अनेक स्तोत्रों से स्तुति करने लगे। (९)