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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
परिशिष्टम्
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 ऊने दद्यात् गुरूनेवं यावत्सर्वलघुर्भवेत्
 प्रस्तारोऽयं समाख्यातश्छन्दोविच्छित्तिवेदिभिः

 अर्थः-छन्द के जितने अक्षर हो उतने गुरु बनाकर प्रथम रक्खे, और पहिले गुरु के नीचे लघु रख कर बांकी ऊपर जैसाहो वैसे ही नीचे रखता जाय, और उन स्थान में गुरु रक्खे यही क्रिया बार बार करे, जब तक सब लघु न हो जावे, छन्दः शास्त्रज्ञ लोगों ने इस को प्रस्तार कहा है। (इसके करने से एक छन्द के अनेक भेद निकलते हैं)

अक्षर प्रस्तार का यह उदाहरण है


SSS मगणः
ISS यगणः
SIS रगणः
IIS सगणः
SSI तगणः
ISI जग्णः
SII भगण:
||| नगणः