पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/१३

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( चार ) कहा है कि नाटक कविता की कली है; प्रगीत और कथा साहित्य का मेल है, वास्तविक घटना की सतत गतिमान प्रफुल्लता है जो आने वाली पीढी की भावना के मेल में स्वयं को विकसित कर लेती है। भारतीय नाटक साहित्य का सीमा विस्तार भारतीय साहित्य का ही नहीं विश्व साहित्य का सर्वप्राचीन काव्यसंकलन, ऋग्वेद माना जाता है। जैसा कि उक्त विवेचन से सिद्ध है कि प्रत्येक प्रगीत नाट्यमूलक या नाट्यपर्यवसायी होता है। अत: नाटक साहित्य का भी उद्गम ऋग्वेद से ही माना जाता है। उस समय से लेकर आज तक अप्रतिहतगति से संस्कृत नाटकों की रचना हो रही है। इस प्रकार नाटक साहित्य का परिणाह सैकड़ों नहीं हजारों वर्षों की कालावधि में व्याप्त है। सुविधापूर्वक इस नाटक साहित्य परम्परा को तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है- (१) आदिकाल- वैदिक युग से ईसवी सन् के प्रारम्भ तक; (२) मध्यकाल- ईसवी सन् के प्रारम्भ से १९वीं शताब्दी के अन्त तक और (३) आधुनिक काल- बीसवीं शताब्दी। आदिकाल अथवा अन्ययुग इस काल की कोई पूर्ण नाट्यकृति प्राप्त नहीं होती। ऐसा स्वाभाविक भी है। जैसाकि मैक्समूलर ने कहा है भारतीय और यूनानियों की मनोवृत्तियां विरोधी दिशाओं में जाने वाली थीं। भारतीय लोग जीवन को असारअसत्य मानते थे तथा जीवन का उनका अन्तिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना था जबकि यूनानी लोग जीवन को पूर्ण सत्य मानते थे और भौतिक उन्नति को सर्वाधिक महत्व देते थे। यही कारण है भारतीय भावुक कवि समाज अपनी रचनाओं के साथ अपना नाम सुरक्षित रखने के लिये उत्सुक नहीं था। उसे केवल अपनी रचना को सुरक्षित रखने की चिन्ता थी । अत: वह अपनी रचनाओं को समाज में महत्ता प्राप्त महान लेखकों के नाम से प्रसिद्ध करता था जिनके लिये उसका विश्वास था कि उसकी रचना प्रतिष्ठित रहेगी और चलती भी रहेगी। यही कारण है कि वेदव्यास के नाम पर चारो वेद, सभी पुराण, उपपुराण आदि अनेक रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। यह साहित्यराशि इतनी विशाल है कि एक व्यक्ति की जीवन साधना तो हो ही नहीं सकती किसी एक युग में भी इतना साहित्य लिखा नहीं जा सकता। इसका आशय यह नहीं है कि यह साहित्य उच्चकोटि का नहीं है। इस विषय में मैकडानल का यह कहना महत्वपूर्ण है कि किसी भी पाश्चात्यसाहित्य में किसी एक विषय में १० अच्छी कवितायें संकलित करना कठिन हो जायेगा जबकि वैदिक साहित्य में उषा इत्यादि किसी भी प्राकृतिक तत्व के विषय में बात की बात में ५०० उच्चकोटि की कविताओं को संकलित कर देना एक साधारण सी बात होगी। वेदों की उच्चकोटि की रचनाओं पर सारा साहित्यसमाज मन्त्रमुग्ध है, यहां तक कि पाश्चात्य विचारकों को वेदों की इतनी प्राचीनता पर भी सन्देह १. (दे. विण्टर नित्ज 'हिटी आफ इण्डियन लिटरेचर' तृतीय भाग पू. १७९)