पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/१५

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

( छ: ) कूटनीति परक है, अग्नि के खेद, विवाद, मनोरंजन इत्यादि अनेक भावनाओं का इनमें समावेश है। ऋग्वेद के इन सूक्तों के अनुकरण पर ही बाद में अथर्ववेद में मी (५११) पर एक संवादसूक्त आया है। वैदिक युग के समाप्त होने के समीप भी इस प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं जिनमें गद्य के अन्दर इस प्रकार के पद्यखण्ड जोड़ दिये गये हैं। गद्य और पद्य की भाषा में भेद है। पद्य की भाषा ऋग्वेद की परवर्ती भाषा से मिलती जुलती है। इस प्रकार के परवर्ती सूक्तों में ब्राह्मण ग्रन्थों मे सुपर्णाध्याय आता है जिसमें महाभारत में आई हुई कडू, विनता और गरुड को कथा का प्रतिरूप पाया जाता है। इसी प्राकर ऐतरेय ब्राह्मण में शुनः शेष की कथा आती है। निरुक्त एवं उपनिषदों में भी कई छोटे छोटे कथानक मिलते हैं। निरुक्त में वैदिक सूक्तों के सन्दर्भ में इस प्रकार के कथानक दिये गये हैं। यदि यह कल्पना सही मानी जाय कि अनेक सूक्त नाटक रचनाओं से संकलित किये गये हैं तो उसके लिये संवाद सूक्तों तक सीमित रहना ही उचित नहीं होगा। अनेक अन्य सूक्तों की भी इसी प्रकार की व्याख्या की जा सकती है जिनमें उच्चकोटि की कविता और पारिवारिक परिस्थितियों का चित्रण किया गया है। उषा अनेक रूपों में हमारे सामने आती है। यह द्यौः की चमकीली कन्या एवं काली रात्रि की प्रभाशालिनी बहन है। यह अपने प्रेमी के प्रकाश से प्रकाशित होती है। सूर्य उसके पीछे से उसके मार्ग पर प्रकाश रश्मियां विकीर्ण करता है और उसके पीछे इसी प्रकार चलता है जैसे एक तरुण पुरुष किसी तरुणी के पीछे उसका पदानुसरण करता है। वह एक नर्तकी है जो शृङ्गार कर पूर्व में आकर खड़ी होती है और अपने स्तनों का प्रदर्शन करती है। विवाह विषयक सूक्त सामाजिक जीवन पर अच्छा प्रकाश डालता है। चन्द्रमा सूर्य की पुत्री सूर्य का प्रेमी है! सूर्या स्वयं चन्द्रमा को पति रूप में चाहती है। विवाह का प्रस्ताव लेकर अश्विन पिता सूर्य के पास जाते हैं। सूर्य उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं और पुत्री को उसके चाहे हुये पति के घर भेज देते हैं। उसको ले जाने के लिये दो पहियों वाली गाड़ी पुष्प से सजाई जाती है। विवाह विधि में यज्ञाग्नि के चारों ओर परिक्रमा की जाती है। तब वरयात्रा पर आशीर्वादों में आशंसा की जाती है और यह आकांक्षा व्यक्त की जाती है कि नवविवाहित दम्पत्ति बहुत अधिक सन्तान प्राप्त करें, सम्पन्नता, दीर्घजीवन और रोगों से निर्मुक्ति का आनन्द लें। तब वधू का हाथ वर के हाथ में दिया जाता है। वर वधू का हाथ पकड़ते हुये कहता है गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्तं मया पत्याजरदष्टिर्यथासः। भगो अर्यमा सविता पुरन्ध्रिर्मह् त्वादुर्गार्हपत्याय देवाः॥ [हम तुम्हारा हाथ पकड़ रहे हैं जिससे हमें अच्छा सौभाग्य प्राप्त हो। मुझ पति के साथ तुम वृद्धावस्था प्राप्त करो, मग, अर्यमा, सविता, पुरन्ध्रि इन सब देवताओं द्वारा मेरे घर में भाग लेने के लिये तुम मुझे प्रदान की गई हो।