( सात ) इसके बाद प्रदान करने के लिये (कन्यादान करने के लिये) अग्निदेव को बुलाया जाता है- ‘हे अग्निदेद प्रकाशमान सूर्य को पहले उन लोगों ने वधू समूह के साथ तुम्हारे सम्मुख उपस्थित किया; इसलिये अपनी वारी में पति को पली प्रदान करो और साथ ही उसे सन्तति परम्परा का आशीर्वाद दो।' इसके बाद विदा और पति के घर में प्रवेश का अवसर आता है- ‘यहीं रहो; वियुक्त मत हो, विस्तार कर और अपने पुत्रों पौत्रों के साथ खेलते हुये अपने ही घर में आनन्द भोगते हुये जीवन को दिये हुये पूरे विस्तार को प्राप्त करो।' उषा की बहन निशा भी एक महत्वपूर्ण युवती है। उषा को सूर्य चमकाता है। किन्तु निशा नक्षत्रों से अपना शृङ्गार स्वयं करती है। वह सूर्य के अश्य हो जाने पर स्वयं को सजाती है और अपने पास से उषा को भगा देती है। अदिति देवताओं की मां है। उसका पुत्र शक्तिशाली वरुण है। वरुण की भांति ही उसमें भी शारीरिक यन्त्रणाओं और नैतिक अपराधों से छुटकारा देने की शक्ति है। वह मां जो ठहरी। सरस्वती भी उच्च देवियों में एक है। पारिवारिक जीवन के अतिरिक्त सामाजिक राजनैतिक और युद्ध सम्बन्धी सूक्त भी पाये जाते हैं। राजनैतिक और युद्ध सम्बन्धी सूक्तों में वीर रस की प्रधानता है। सरमापणि संवाद कूटनीति विषयक हैं। यह पणिनामक असुरों द्वारा अपहृत गायों के विवाद को लेकर इन्द्र की दूती सरमा और पणियों के बीच हुआ है। कबीलों के जातीय संघर्ष की छाया भी ऋग्वेद के सूक्तों में पाई जाती है। पांच जातियां- पुरु, तुर्वश, यदु, अनु और दृढ़ निरन्तर जातीय संघर्ष में लिप्त रहती थीं। इनका प्रायः वर्णन इस रूप में किया गया है कि इनमें चार जातियों ने त्रित्सुओं के राजा सुदास के प्रतिकूल संगठन बना लिया था और अन्य कुलों के कतिपय अन्य राजाओं का सहयोग लेकर १० राजाओं ने परुष्णी नदी के तट पर महायुद्ध लड़ा था। परुष्णी नदी की धारा को पार करने और उसमें अवरोध उत्पन्न करने के प्रयत्न में त्रित्सुओं ने दस राजाओं की संगठित सैन्यशक्ति को पराजित कर दिया था; उन्हें पीछे ढकेल दिया था। इस युद्ध में त्रित्सुओं ने १० राजाओं की संगठित सैन्य शक्ति का महाविनास किया था। पुरुजाति सरस्वती के तट पर रहती थी । ऋग्वेद में उनके राजा त्रसदस्यु का उल्लेख किया गया है जो पुरुकुत्स के पुत्र थे। ऋग्वेद में उनके शक्तिशाली राजकुमार तुझी का उल्लेख किया गया है। तुर्वश लोगों के साथ यदु भी सम्मिलित थे। अनु लोग परुष्णी के तट पर रहते थे। ज्ञात होता है कि कण्व लोगों का पुरोहितों का परिवार तुर्वश से सम्बद्ध था और भृगुओं का परिवार अनुजाति वालों का पुरोहित था। उन लोगों का निकटवर्ती सम्बन्ध द्रुह्य लोगों से भी था। ऋग्वेद में मत्स्य जाति का भी उल्लेख किया गया है। त्रित्सु लोगों के शत्रुओं में उनका भी उल्लेख किया गया है। महाभारत के अनुसार मत्स्य लोग यमुना के तट पर रहते थे। ।
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