पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/२८३

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

पञ्चायुधप्रपञ्च ( २१६ ) थे। इन्हें तर्क वागीश और महामहोपाध्याय की उपाधियां प्राप्त थीं। अन्त में ये वनारस में रहने लगे थे। इन्हें पूफरीडिंग और सम्पादन का अच्छा अनुभव था क्योंकि ये बंगवासी प्रेस में कार्यरत रहे थे। शिक्षा और संस्कृत साहित्य प्रचार की दिशा में भी इनका कार्य स्तुत्य रहा था। कुछ दिनों राजनीति के बन्दी भी रहे थे। उक्त नाटक के अतिरिक्त इन्होंने पार्थाश्वमेध एवं सर्वमंगलोदय नामक एक-दो काव्य भी लिखे थे इन्होंने कई दार्शनिक कृतियों की व्याख्या भी लिखी थी। इनका समय बीसवीं शताब्दी का पूर्वार्ध है। इनके प्रसिद्ध पूर्वजों में कान्यकुब्ज अल्लभट्ट का नाम लिया जाता है। पञ्चायुधप्रपञ्च- (ना.कृ) त्रिविक्रम लिखित भाण। कैटेलागस कैटेलागोरम I ३१७ और I २६१ में उल्लिखित। इसकी रचना शक संवत् १७२७ (सन् १७९५) में की गई पंचालिकारक्षणम्- (ना.कृ) पेरीकाशीनाथ शास्त्री लिखित नाटक। पण्डितचरितप्रहसनम्- (ना.) मधुसूदन काव्यरत्न लिखित प्रहसन । पद्मक- (ना.पा) वत्सराज (दे) लिखित समुद्रमन्थन (दे) का एक पात्र । (१) पद्मनाभ- (ना.का) चन्द्रिका जनमेजय (दे) नामक पौराणिक कथानक पर आधारित नाटक के लेखक। इनका जीवन वृत्त सर्वथा अज्ञात है। जार्जपञ्चम के जीवन के विषय में जार्जदेवचरित काव्य एवं पवनदूत नामक काव्य लिखने वाले जी.वी. पद्मनाभन से सम्भवतये भिन्न थे। (२) पद्मनाभ-(ना.का) कोटिपल्ली के तेलुगु ब्राह्मण भरद्वाज गोत्रीय लक्ष्मण दीक्षित और वेङ्कटाम्बा दीक्षित के पुत्र थे। इनकी दो नाट्यकृतियां प्राप्त होती हैं- त्रिपुरविजय व्यायोग (दे) और लीलादर्पण भाण (दे) उपनाम मदनलीलादर्पण। इनका समय १९वीं शताब्दी है। पद्मनाभाचार्य- (नाका) ध्रुवतापस (दे) एवं गोवर्धन विलास (दे) के लेखक । इनका समय १९वीं और २० वीं शताब्दी है। ये कोयम्बटूर में एडवोकेट थे। वहीं से इनके नाटक प्रकाशित हुये थे। पद्मप्राभृतक- (नाकू) शूद्रक (दे) लिखित भाण जिसका संकलन चतुर्भाणी में किया गया है। यह नाटक काव्य कला का एक अच्छा नमूना है और संस्कृत की सर्वोत्तम रचनाओं में इसकी गणना की जा सकती है। सखी सुरतसमय में मसले हुये पद्य को प्रेषित करने का उपदेश देती है। इसी आधार पर इस भाण का नामकरण हुआ है। पद्मसुन्दर- (नाक) १६वीं शताब्दी के नाटककार। अकवर वादशाह ने इन्हें सम्मानित किया था। ये उनके दरवार के पण्डित थे। इनका कार्यस्थल मुजफ्परनगर का चरथावर (चरथावल) था; किन्तु इन्हें जोधपुर के महाराजा मालदेव से सम्मान प्राप्त हुआ था। इनकी रचनाओं में काव्य, महाकाव्य, कोषग्रन्थ, ज्योतिष के अतिरिक्त ज्ञानचन्द्रोदय भी